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(८) विषय
विषय दुर्विचारोंकी निन्दा ४८०--४९० संवरानुप्रेक्षा दुर्गधा अच्युतस्वर्गमें देवी हुई । निर्जरानुप्रेक्षा
५०४ देवांगना द्रौपदी हुई
लोकानुप्रेक्षा युधिष्ठिरादिकोंमें विशिष्टता प्राप्त
बोधिदुर्लभानुप्रेक्षा
५०५ होनेमें हेतु
धर्मानुप्रेक्षा पर्व पच्चीसवाँ
धर्म, भीम, अर्जुनको मुक्तिलाभ नेमिप्रभुसे पाण्डवोंका दीक्षाग्रहण ४९३--४९४ नकुल तथा सहदेवको कुन्त्यादिकोंका दीक्षाग्रहण ४९४ सर्वार्थसिद्धिलाभ
५०६-५०८ पाण्डवोंका दुश्चर तपश्चरण ४९५-.४९७ कुन्ती, द्रौपदी आदिकोंको मैत्र्यादिक भावनाओंसे
अच्युतस्वर्गमें देवपदप्राप्ति ५०९ उपसर्गादि-सहन
नेमिप्रभुका निर्वाणोत्सव
५०९ पाण्डवोंको घोर उपसर्ग ४९८--४९९ नेमिप्रभुके पूर्वभवोंका कथन पंचपरमेष्ठियोंका चिन्तन ४९९-५०० पाण्डवभव-कथन पाण्डवोंके अनुप्रेक्षाचिन्तनमें
नेमिप्रभुको पापविनाशार्थ प्रार्थना ५१० अनित्यानुप्रेक्षा
५००
कविकी नम्रता अशरणानुप्रेक्षा
कविप्रशस्ति
५१३ संसारानुप्रेक्षा
कविविरचित ग्रन्थोंकी नामावलि एकत्वानुप्रेक्षा
पाण्डव-पुराणका कर्तृत्व
५१५ अन्यत्वानुप्रेक्षा
५०२-५०३ स्वशिष्यप्रशंसा अशुचित्वानुप्रेक्षा
पाण्डवपुराण-रचनाकाल आसवानुप्रेक्षा
५१५
५०३
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