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________________ पाण्डवपुराणम् अन्यदा धान्तिकाक्षणा सुव्रतैः सुव्रता गृहम । तत्पितुःप्राप दुर्गन्धा तत्र गत्वा च तां नता।। तनायिका प्रतिगृह्याहारं दत्ते स्म सोज्ज्वलम् । आर्यिका तं च जबाह जुगुप्सोज्झितमानसा ।। समभावेन सा लात्वाहारं तत्र धणं खिता। क्षान्तिकाभ्यां समक्षाभ्यां सथमाभ्यां च शान्तिका ॥५० सा ते संवीक्ष्य पप्रच्छ के इमे यौवनोन्नते । शान्तिके दीक्षिते केन हेतुना वद चार्यिके ॥५१ सावोचत्प्रथमे नाके विमला सुप्रभाभिधे । सौधर्मेशस्य चाभूतां प्राग्भवे योषिताविमे ॥५२ पत्या सहान्यदा देव्यौ द्वीपे नन्दीश्वराभिधे । जग्मतुः सोत्सवे देवान्संपूजयितुमुद्यते ॥५३ नत्वा जिनेन्द्रमूर्तीनां पादपवान्प्रमोदिते । देव्यौ दिव्याम्बुगन्धायैः पूजयामासतुः परे ॥५४ गीतनृत्यादिकं कृत्वा प्रतिज्ञा प्रतिचक्रतुः । प्राप्य मर्त्यभवं नूनं करिष्यावस्तपोऽप्यतः ॥५५ अयोध्याधिपतेरत्र श्रीषेणस्य ततश्चयुते । श्रीकान्तावल्लभायां ते बभूवतुरिमे सुते ॥५६ हरिषेणाथ श्रीषेणा क्षितौ ख्याति गते इमे । यौवनालंकृते रम्यरूपे मदनसुन्दरे ॥५७ । सयौवने इमे वीक्ष्य स्वयंवरविधि नृपः । चकल्पे कल्पनातीतमहोत्सवशतावृतः ॥५८ दुःखित दुर्गधाकी रक्षा की ॥४७॥ किसी समय उत्तमव्रतोंसे परिपूर्ण सुवता नामकी आर्यिका दुगंधाके पिताके घरमें आई तब वहां जाकर दुगंधाने आर्यिकाको वंदन किया। उसने आर्यिकाको पडगाह कर उसे उज्ज्वल आहार दिया । आर्यिकाने जुगुप्सा छोडकर आहार ग्रहण किया। क्षमाधारण करनेवाली प्रत्यक्ष दो आर्यिकाओंके साथ वह सुव्रता आर्यिका आहारके अनंतर कुछ कालतक वहां ठहर गयी ॥ ४८-५० ॥ _ [दो आर्पिकाओंकी पूर्वभवकथा] दुर्गंधाने तारुण्यसे उन्नत दो आर्यिकाओंको देखकर पूछा कि इन दो आर्यिकाओंने किस हेतुसे दीक्षा ली है ! उनका वृत्त मुझे कहो ? तब आर्यिकाने इस प्रकारसे उनका वृत्त कहा ". पूर्वभवमें पहिले स्वर्गमें सौधर्मेन्द्रकी विमला और सुप्रभा नामकी ये दोनों पत्नी हुई थीं। किसी समय सौधर्मेन्द्र के साथ ये दोनों देवियां नन्दीश्वरनामक द्वीपमें आनंदसे जिनमूर्तियोंकी पूजा करनेके लिये उद्युक्त हुईं। जिनेन्द्रमूर्तियोंके चरण-कमलोंको नमस्कार कर वे अतिशय हर्षित हुई। वे उत्तम देवियां दिव्य जलगंधादिक द्रव्योंसे जिनमूर्तियोंको पूजने लगीं। गीतनृत्यादिक करके उन दोनों देवियोंने ऐसी प्रतिज्ञा की- “ इस भवके अंनतर मनुष्यभव प्राप्त कर निश्चयसे हम तप करेंगी" देवलोकका आयुष्य समाप्त होनेपर वे वहांसे च्युत हुई, और अयोध्यानगरीके स्वामी श्रीषेणराजा तथा रानी श्रीकान्तामें वे दोनों कन्यायें हो गई । हरिषेणा और श्रीषेणा इस नामसे वे दोनों कन्यायें इस भूशेकमें ख्यातिको प्राप्त हुई। यौवनसे भूषित, रमणीय रूपवाली ये कन्यायें मदनावस्थासे सुंदर दीखती थीं। तारुण्ययुक्त अपनी कन्याओंको देखकर कल्पनातीत सैंकडो महोत्सवोंके साथ राजाने स्वयंवरविधि किया ।। ५१-५८ ॥ उस समय स्वयं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002721
Book TitlePandava Puranam
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorJindas Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1954
Total Pages576
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, Story, & Biography
File Size15 MB
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