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________________ ve . पाण्डवपुराणम् त्वमेव हितकन्नृणां त्वमेव भवतारकः । त्वमेव केवलोद्भासी त्वमेव परमो गुरुः ॥४१ त्वत्प्रसादाजना यान्ति जवंजवाब्धिपारताम् । तव प्रसादतो जीवो लभते पदमव्ययम् ॥४२ त्वमव्ययो विमुर्भास्वान्भर्ता भवभयापहः । भगवान्भव्यजीवेशः प्रभग्नभयसंकटः ॥४३ कैवल्यविपुलं देवं सर्वज्ञ चिद्गुणाश्रयम् । मुनीन्द्रमामनन्ति त्वां गणेशं गणनायकम् ॥४४ त्वया बाल्येऽपि नाकारि प्राज्ये राज्ये विराजिते । . गजवाजिमहारामाराजिभिश्च महामतिः ॥ ४५ कन्दर्पदर्पसर्पस्य हतौ त्वं गरुडायसे । सर्वलोकहिताख्यानाद्धितकृद्धितदायकः ॥४६ धिषणाधिष्ठितत्वेन त्वमेव धिषणायसे । अतो नमो जिनेन्द्राय नमस्तुभ्यं चिदात्मने ॥४७ नमस्ते बोधसाम्राज्यराज्याय विजितद्विषे । अनन्तशर्मणे नित्यमाबालब्रह्मचारिणे ॥४८ केवलज्ञानरूपाय नमस्तुभ्यं महात्मने । नमस्तुभ्यं शिवाट्याय केवलं केवलात्मने ॥४९ नमोऽनन्तसुबोधाय विशुद्धाय बुधाय ते । त्वया राजीमती त्यक्ता बाल्ये पालार्कसंनिभा ॥ पाण्डवोंने नेमिजिनेश्वरकी स्तुति करना प्रारंभ किया। " हे नाथ, आपही संसारसमुद्रमें मनुष्योंको नौकाके समान हैं । आपही जगत्के खामी हैं, आपही उत्कृष्ट उदयवाले हैं। आपही जगत्के रक्षक और आपही परमेश्वर हैं। आपही मनुष्योंका हित करते हैं और आपही संसार-तारक हैं। आपही केवलज्ञानसे प्रकाशमान् हैं और आपही परम गुरु हैं । हे प्रभो, आपकी कृपासे लोक संसारसमुद्रको पार करते हैं। आपके प्रसादसे जीव अविनाशी मुक्तिपदको प्राप्त करते हैं। हे प्रभो, आप अवि. नाशी हैं, ज्ञानसे विभु-व्यापक हैं, भामण्डलसे प्रकाशमान हैं, आप भव्योंको हितमार्ग दिखाकर उनका पोषण करते हैं, अतःभर्ता हैं । उनके संसार-भयका नाश करते हैं। आप भगवान-समवसरण-लक्ष्मी व अनन्त ज्ञानादि ऐश्वर्यके पति हैं। भव्य जीवोंके स्वामी हैं। आपके भय और संकट नष्ट हुए हैं। हे प्रभो, आपको कैवल्यसे विपुल, देवोंसे स्तुति की जानेसे देव, सर्व पदार्थोके ज्ञाता होनेसे सर्वज्ञ, चैतन्यगुणके आधार, मुनियोंके स्वामी, द्वादशगणोंके प्रभु और गणनायक कहते हैं ।। ३९-४४ ॥ हाथी, घोडे, सुंदर स्त्रियाँ, इनके समूहोंसे उत्कृष्ट, शोभायुक्त राज्य होनेपरभी उसमें आपकी मतिने प्रवेश नहीं किया। हे प्रभो, मदनका गर्वरूप सर्प मारनेमें आप गरुडके समान हैं । सर्व लोगोंको हितोपदेश करनेसे आप हितकृत् और हितदायक हैं। बुद्धिसे केवलज्ञानसे अधिष्ठित (युक्त) होनेसे आपही धिषण-गुरुके समान हैं इस लिये हे जिनेन्द्र, आपको हम नमस्कार करते हैं। चैतन्यस्वरूप आपको हमारा नमस्कार है। आप केवलज्ञानरूप साम्राज्यके राजा हैं। आप शत्रुरहित हैं, आप सदा अनंत सुखी और बालब्रह्मचारी हैं। आप केवलज्ञान धारण करते हैं। आप महात्मा हैं इस लिये हम आपको नमस्कार करते हैं। आप अनंतशिवसे-सुखसे पूर्ण हैं तथा आप केवल आत्मरूप हैं अर्थात् कर्म आपसे पूर्ण पृथक् होगया है। अनंतज्ञानरूप Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002721
Book TitlePandava Puranam
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorJindas Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1954
Total Pages576
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, Story, & Biography
File Size15 MB
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