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द्वाविंश पर्व अपराजितनिर्माशे गौतमामरसंस्तवे । रुक्मिणीहरणे तूर्ण शिशुपालवधोद्यमे ॥२९ जरासंधवधेऽस्माकं चक्ररत्नसमागमे । त्रिखण्डपरमैश्वर्ये भवद्भिर्नेक्षितं बलम् ॥३० सरिजलसमुत्तारे किं माहात्म्यं बलेक्षणे । अद्यापि जडता याति युष्माकं न खलात्मनाम् ॥ दूरं यान्तु भवन्तोत्र योजनानां शतान्तरे । अपाच्यां मथुरायां च चिरं तिष्ठन्तु पाण्डवाः ॥ इत्युक्ते दुःखचेतस्का जग्मुर्गजपुरं नृपाः । अभिमन्युसुतं तत्र सुभद्रापौत्रमुत्तमम् ॥३३ विराटनृपसंजातोत्तरादेवीसमुद्भवम् । हरिः परीक्षितं राज्ये स्थापयामास सुस्थिरम् ॥३४... द्वारावतीं ययौ विष्णुदक्षिणां मथुरां गताः । पाण्डवा मातृकान्तायैः पुत्रैः सह समुद्धताः॥ अथ द्वारावतीपुर्या नेमीशो हरिसंसदि । संप्राप्तो बलमाहात्म्यवर्णने वर्ण्यतां गतः ॥३६ स कनिष्ठिकया कृष्णं दोलयामास तीर्थराट् । विरक्तः केशवो जज्ञे श्रीनेमे राज्यलोभतः ।। कदाचिजलखेलायां क्रीडन्वत्रस्य पीलने । जाम्बूवत्यभिमानेन मानितो न जिनेश्वरः ॥३८ शस्त्रशाला समासाद्य नागशय्यां समाश्रितः। शाङ्ग ज्यायांस आरोप्यापूरयत्कम्बु नासया॥ तदागत्य हृषीकेशो नत्वा तत्पादपङ्कजम् । शशंस परमैवाक्यैस्तं विवाहस्य सूचकैः ॥४०
शिशुपालका वध करनेमें उद्यत होना, जरासंधके वधका कार्य, चक्ररत्नकी प्राप्ति, त्रिखण्डका उत्तम ऐश्वर्य, इत्यादि कार्य हमने किये उस समय हमारा बल नहीं देखा ? तुम दुष्टोंकी अद्यापि मूर्खता नष्ट नहीं होती है ? हे पाण्डवो, तुम यहांसे सौ योजन दूर दक्षिणमथुरामें जाकर वहां दीर्घकालतक रहो ॥ २६-३२ ॥
[परिक्षितको राज्य-प्राप्ति ] श्रीकृष्णके ऐसा वचन कहनेपर पाण्डवराजाओंका मन दुःखित हुआ। वे गजपुर गये वहां अभिमन्युका पुत्र अर्थात् सुभद्राका उत्तम पौत्र अर्थात् विराटराजासे उत्पन्न दुई कन्या उत्तरादेवीसे उत्पन्न हुआ पुत्र जिसका नाम परीक्षित था उसे राज्यपर श्रीकृष्णने स्थिरतासे स्थापन किया। तदनंतर श्रीविष्णु द्वारावती चले गये और उद्धत अर्थात् शूर पाण्डव अपनी माता, अपनी स्त्रियाँ और अपने पुत्रोंको साथ लेकर दक्षिण मथुराको गये ॥ ३३-३५॥ इसके अनंतर किसी समय नेमिनाथप्रभु श्रीकृष्णकी सभामें गये। उस समय वीरोंके बलक महात्म्यका वर्णन हो रहा था तब प्रभु बलमाहात्म्यवर्णनका विषय हो गये ॥ ३६॥
नेमिनाथ जिनेश्वरका दीक्षा-ग्रहण ] तीर्थराज नेमिप्रभु कनिष्ठिकाके द्वारा श्रीकृष्णको झुलाने लगे। तब कृष्णके मनमें राज्यलोभ उत्पन्न हुआ। नेमिप्रभु मेरा राज्य बलवान होनेसे छीन लेंगे ऐसा उसके मनमें दुर्विचार आ गया और वह उनसे विरक्त हो गया ॥ ३७ ॥ किसी समय जलक्रीडामें प्रभु तत्पर हो गये, उन्होंने जाम्बूवतीको वस्त्र निचोडने के लिये कहा। परन्तु अभिमानसे उसने जिनेश्वरको नहीं माना । तब शस्त्रशालामें आकर वे नागशय्यापर आरूढ हो गये और शार्ङ्गधनुष्यको दोरीपर आरूढ कर नाकसे उन्होंने शङ्ख पूरा । तब श्रीकृष्ण वहां आ गये उन्होने प्रभुके
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