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________________ पाण्डपपुलम् ये यादवा रणे नष्टाः प्रविष्टा हुतभुक्चये । श्रूयन्ते तत्र जीवन्तः सुस्थिता जलधौ परे॥२४ प्राभृतीकृत्य रत्नानि वैश्येनैकेन चक्रभृत् । यादवानां महाराज्यप्रभावश्च निवेदितः ॥२५ जरासंधः समाकण्ये यादवान्पाण्डवान्स्थितान् । द्वारावत्यां महाक्रोधात्प्राहिणोत्प्रणिधीन्नृपान्।। आकारिता नृपाः सर्वे प्रधानपुरुषोत्तमाः । संवत्सरेण चैकेन मिलितास्तत्र तेऽखिलाः ॥२७ दुर्योधन धराधीश प्रेषितोऽहं तवान्तिकम् । चक्रिणा कारणायैव गन्तुं कुरु मतिं विभो ॥२८ वाहिनीं विविधां वीरविशिष्टामिष्टचेष्टिताम् । सजीकृत्य समागच्छ स्वच्छो वत्स ममान्तिकम्।। इति लब्धमहादेशो रोमाश्चितशरीरकः । कौरवोऽपूजयद्दतं वसनैर्भूषणैर्धनैः॥३० अचिन्तयच्चिरं चित्ते यदिष्टं मनसि स्थितम् । तदेव चक्रिणानीतमिदानीमिति कौरवः ॥३१ योद्धा दुर्योधनो धीमारणभेरीमदापयत् । सभ्यान्सभापतीन्क्षुब्धान्कुर्वन्ती रणलालसान् ॥ मत्ता मतङ्गजाश्चेलुः कुथाच्छादितविग्रहाः। रथाः सारथिभिः शीघ्रं श्वेतवाजिविराजिताः ॥३३ चञ्चलास्तुरगाश्चेलुश्चलचामरचर्चिताः । पूर्णाः पदातयश्चापि परायुधसमुत्करैः ॥३४ चतुरङ्गबलेनामा समियाय स कौरवः । छादयन्निखिलं व्योम रेणुभिः सुखरोत्थितैः ॥३५ हुआ है, जिसका महावक्षःस्थल है और जो प्रजाओंकी सुरक्षा करता है। जो यादव युद्ध में नष्ट हुए और अग्निके समूहमें प्रविष्ट हुए ऐसा सुना जाता था वे समुद्रमें द्वारिकानगरीमें जीवन्त हैं अच्छी तरहसे राज्य कर रहे हैं। एक वैश्यने जरासिंधु राजाको रत्नोंकी भेट देकर यादवोंके विशाल राज्यका प्रभाव भी कहा। जरासंधने द्वारिकानगरीमें पाण्डव रहे हैं ऐसा सुनकर अतिशय क्रोधसे राजाओंके सन्निध गुप्तपुरुषोंको भेज दिया है। जो प्रधान और पुरुषश्रेष्ठ हैं ऐसे सब राजाओंको जरासंधने आमंत्रण दिया था और वे सब एक वर्षसे उसके यहां आकर मिले हैं । “हे दुर्योधनमहाराज, मुझे चक्रवर्तीने आपके पास बुलाने के लियेही भेज दिया है, इसलिये हे प्रभो' राजगृहनगरको जाने के लिये आप निश्चय कीजिये" । " जिसमें विशिष्ट वीर हैं ऐसी मनोनुकूल आचरण करनेवाली नानाप्रकारकी सेना सज्ज करके मेरेपास अच्छे विचारवाले हे वत्स तुम आओ" ऐसी महाआज्ञा जिसको प्राप्त हुई है, जिसका शरीर रोमांचयुक्त हुआ है ऐसे कौरव दुर्योधनने वस्त्र, अलंकार और धनसे दूतका आदर किया ॥ २१-३०॥ [ दुर्योधनका जरासंधसे मिलना ] राजा दुर्योधन बहुत देरतक विचार कर रहा, कि जो इच्छा मेरे मनमें थी, वही चक्रवर्तीने इस समय मेरे पास प्रकट की है। अर्थात् मेरे अनुकूलही चक्रवर्तीका यह आमंत्रण मुझे मिला है, ऐसा विचार करके विद्वान् योद्धा दुर्योधनने सभ्य और सभापतिको क्षुब्ध और रणाभिलाषी करनेवाली रणभेरी बजवाई ॥ ३१-३२ ॥ जिनका शरीर झूलोंसे आच्छादित हुआ है ऐसे मत्त हाथी चलने लगे। शुभ्र घोडोंसे विराजित और सारथियोंसे सहित ऐसे रथ शीघ्र चलने लगे। चंचल चामरोंसे सुशोभित घोडे चलने लगे। उत्कृष्ट आयुधोंके समूहसे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002721
Book TitlePandava Puranam
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorJindas Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1954
Total Pages576
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, Story, & Biography
File Size15 MB
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