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अष्टादश पर्व
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पुनर्बबन्ध धैर्येण जालंधरमहीपतिम् । विराटं मोचयामास भीमो भीतिविवर्जितः || ४.१ भनं शत्रुबल तावन्भनाश निहतं शरैः । भीमो विराटमामोच्य गोधनं च नृपं ततः ॥४२ तावद्दुर्योधनः श्रुत्वा किंवदन्तीमिमां जनात् । क्रुद्धो योद्धुं सुसंबद्धो निर्जगाम सुसाधनः ॥४३ विराटनगरं प्राप्य दुर्योधनमहायुधः । उत्तरस्यां प्रतोल्यां हि संस्थितः संगरेच्छया ॥४४ संचरत्संचरच्चारु जहार वरगोकुलम् । तदोत्तरपुरं क्षुब्धं समभूद्भयविह्वलम् ॥४५ चिन्तयन्ति स्म ते चित्ते चिन्ताशनिसमाहताः । किं कुर्मः क्व प्रगच्छाम इति शोकसमाकुलाः ॥ साहाय्येन विना सर्व वैरिणा गोकुलं हृतम् । बभाषे द्रौपदी तावलोकान्लोलसुलोचना ||४७ अयं बृहन्नटो वीरो जानाति रणसक्रियाम् । पार्थस्य सारथिर्भूत्वावाहयद्बहुशो रथान् ॥ ४८ श्रुत्वा विराटपुत्रेण ददे तस्मै महारथः । गजवाजिरथैश्वागात्पुरतो राजनन्दनः ॥४९ पुरो बहिः स्थितः पुत्रो वीक्ष्यासंख्यबलं रिपोः । संख्योन्मुखं क्षणार्धेन मैय भेजे भ्रमन्मतिः ॥ ५०
रणेनानेन दुष्टेन पूयतां पूर्यतां मम । शत्रुसैन्यं ससंनाहं प्रबलं बहुघोटकम् ॥५१ शक्नोम्यत्र नहि स्थातुमाहवे प्राणहारिणि । इत्युक्त्वा नोत्तरं दत्त्वा ननाश नृपनन्दनः ॥
धरराजाको बांध दिया और निर्भय होकर विराटराजाको बंधनमुक्त कर दिया ॥ ४०-४१ ॥
[ युद्धके लिये बृहन्नटके साथ उत्तर - राजपुत्रका गमन ] इतनेमें लोगोंसे जालंधरराजाको भीमने पकडकर बांध दिया है ऐसी वार्ता सुनकर दुर्योधन क्रुद्ध हुआ और उत्तम सैन्यसे सन्नद्ध होकर लडनेके लिये निकला । महायुध धारण करनेवाला दुर्योधन विराटनगरको प्राप्त होकर युद्धकी इच्छासे उत्तरदिशा के मार्गपर आकर डट गया। वहां उसने आक्रमण करके सुंदर गमन करनेवाले गोकुलका अपहरण किया । उस समय उत्तरपुर भयभीत होकर क्षुब्ध हुआ || ४२-४५ ॥ लोग चिन्तारूपी वज्र से आहत होकर मनमें " अब हमें क्या करना चाहिये, हम कहां जावे ऐसा विचार करने लगे । तथा शोकसे व्याकुल होकर हमको साहाय्य न मिलने से हमारा सर्व गोकुल शत्रुने हरण किया है ऐसा कहने लगे " उस समय चंचल नयनवाली द्रौपदीने कहा कि " यह बृहन्नट वीर है। इसको युद्ध लडनेका ज्ञान है । अर्जुनका सारथी होकर इसने अनेकबार युद्धमें रथ चलानेका कार्य किया है " ॥ ४६-४८ ॥ द्रौपदीका भाषण सुनकर विराटके पुत्रने - उत्तर राजकुमारने उसको महारथ दिया और गज, घोडे, रथोंके साथ वह आगे रणमें गया । नगरके बाहर जाकर वहां वह स्थिर हो गया। उसने शत्रुका असंख्य सैन्य युद्ध के लिये तैयार हुआ देखा। उस समय उसकी बुद्धि क्षणार्ध में भयभीत हो गई । इस दुष्ट रणसे मेरा कुछ प्रयोजन नहीं है । मुझे इसकी कुछभी जरूरत नहीं है । शत्रुसैन्य लडनेकी पूर्ण तैयारी में है । उसमें बहुत घोडे हैं और वे खूब बलवान् हैं । प्राणोंको नष्ट करनेवाले इस युद्ध में मैं स्थिर रहने में
असमर्थ हूं। ऐसा बोलकर और
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