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कर्ण [२०, २५९.२६३ ], भीमके द्वारा दुर्योधन आदिक सौ धृतराष्ट्र-पुत्रों [ २०२६६, २९५. ९६, ३४८ ], अश्वत्थामाके द्वारा द्रुपद राजा [ २०-३१०] तथा कृष्णके द्वारा जरासंधका २० ३४१ ] मरण हुआ।
पाण्डवोंका राज्योपभोग व द्रौपदीहरण ___ युद्धके समाप्त होनेपर युधिष्ठिरादिक पाण्डव राज्यका उपभोग करने लगे । एक समय नारद ऋषि उनकी सभामें पहुंचे । पाण्डवोंने उनका समुचित सन्मान किया । पश्चात् नारद पाण्डवोंके साथ अन्तःपुरमें पहुंचे । उस समय श्रृंगारमें निरत द्रौपदीकी दृष्टि उनकी ओर नहीं गई, इसीलिये वह उनका यथेष्ट आदर न कर सकी थी। इससे नारद क्रुद्ध होगये, उनके हृदयमें इस अपमानका बदला लेनेकी भावना जागृत हुई । इसी कारण उन्होंने द्रौपदीका सुन्दर चित्रपट तैयार करके धातकीखण्ड द्वीपमें स्थित दक्षिण भरतक्षेत्र सम्बन्धी अमरकङ्का पुरीके स्वामी पद्मनाभको दिया । वह उसके ऊपर मुग्ध हो गया। उसने इसे प्राप्त करनेके लिये वनमें जाकर संगम देवको सिद्ध किया और उसके द्वारा सोती हुई द्रौपदीका हरण कराया । धातकीखण्ड पहुंच कर जागृत होनेपर उसने पद्मनाभसे अपने अपहरणका समाचार ज्ञात किया। इससे उसे अतिशय क्लेश हुआ। उसने पद्मनाभको एक माह प्रतीक्षा करनेके लिये कहा। इस बीच यदि पाण्डव न आये तो फिर जैसी उसकी इच्छा हो वैसा करे ।
___ इधर प्रातःकाल होनेपर महलमें द्रौपदीको न पाकर पाण्डव दुखी हुए। उन्होंने बहुत खोजा पर कहीं भी उसका पता नहीं लगा । यह समाचार द्वारावतीमें कृष्णके पास भी पहुंच गया। वे क्रोधित हो युद्धके लिये उद्यत हुए। इसी समय उन्हें नारद द्वारा द्रौपदीके हरणका सब समाचार ज्ञात हो गया। उन्होंने स्वस्तिक देवको सिद्ध कर उससे जल में चलनेवाले छह रथ प्राप्त किये। उनसे लवणसमुद्रको पार कर वे धातकीखण्ड द्वीपमें जा पहुंचे और युद्धमें पद्मनाभको जीत कर द्रौपदीको वापिस ले आये। लवणसमुद्रको पारकर यमुना नदीके उस पार पहुंचनेपर भीमने कृष्णके बाहुबलके परीक्षणार्थ नौकाको छुपा दिया । तब कृष्ण तैरकर यमुनाके उस पार गये । १ इति विष्णुगिरा जिष्णुः पुनरप्यात्तधन्वनः । क्षिप्रमेव क्षुरप्रेण राधेयस्याहरच्छिरः ।
दे. प्र. पां. च. १३-७६२ चम्पूभारतके अनुसार भी श्रीकृष्णकी आज्ञासे अर्जुनने नाना अस्त्रोंसे कर्णके शरीरको विद्ध करके प्राणरहित कर दिया। चं. भा. ११,५४-५५. २ दे. प्र. पां. चं. १३, ६०२-६०९ (दुःशासनवध), १३, ९२५-९३३, ९९६ (दुर्योधनमरण)।
चम्पूभारत १२-१२. ३ चम्पूभारत (पृ. ४१० ततः शरसंभवमणिनी....) के अनुसार द्रुपद राजाकी मृत्यु द्रोणाचार्यके द्वारा हुई।
४ उ. पु. ७२, २१८-१९.
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