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________________ ३३८ पाण्डवपुराणम् द्यूतेन याति निःशेषं यशो लोकापवादतः। भवेद्भवे तु निःशेषा द्रव्यहानिः पदे पदे॥११६ सर्वानर्थकरं द्यूतमिहलोकविनाशकम् । क्षणात्क्षिपति निःशेषं परलोकं सुदेहिनाम् ॥११७ व्यसनानामिदं चाद्य द्यूतं दुर्धरदुःखदम् । अदीपि दीपितज्ञानैर्मुनिभिः स्थितिवेदिभिः॥ द्यूतकाराः सदा हेयाः सदा मद्यपवद्भुवि । विद्धि द्यूतसमं पापं न भूतं न भविष्यति ॥११९ इति वाक्येन संक्षुब्धो द्वादशाब्दावधि महीम् । हारयित्वा स कौन्तेयो द्यूतं वारयति स्म च।। धर्मपुत्रो गृहं प्राप भीमाधानमानसः। वचोहरं तदा क्षिप्रं प्राहिणोत्स युधिष्ठिरम् ॥१२१ दूतो गत्वा प्रणम्यात्र विज्ञप्तिं चर्करीति च । धर्मपुत्र जगावेवं मन्मुखेन सुयोधनः ॥१२२ द्वादशाब्दावधिर्यावत्तावदत्रैव संस्थितिः। न कर्तव्या महीनाथ यतो न स्यात्सुखासिका । वने वासो विधातव्यो भवद्भिः सुखकाक्षिभिः। द्वादशाब्दं न जानाति यावत्वन्नाम कोऽप्यलम् ॥ १२४ स्थातव्यं तत्र तावच्च भवद्भिः सातसिद्धये । नेतव्य पाण्डवैः क्वापि गुप्तैवर्षे त्रयोदशम् ॥१२५ अद्यापि रजनी.रम्या न स्थयात्र स्थिराशयाः। अन्यथानर्थसंपातो भविता भवतामिह ॥ वचोहरो निवेद्येति निर्गत्य सदनं गतः । तावदःशासनो दुष्टो द्रौपदीसदनं ययौ ॥१२७ स तां कुन्तलपाशेन गृहीत्वा निरजीगमत् । गृहात्साक्षान्महालक्ष्मीमिव पद्मनिवासिनीम् ॥ गाङ्गेय इति संवीक्ष्य प्रोवाच गुरुकौरवान् । भो भो युक्तमिदं नैव भवतां भवभागिनाम् ।। त्याग करते हैं वैसे द्यूत खेलनेवालोंका हमेशा त्याग करना चाहिये । हे भाई, द्यूतके समान पाप नहीं हुआ है और न होगा । भीमके इस भाषणसे क्षुब्ध होकर धर्मराजने बारह वर्षतक पृथ्वीको हारकर द्यूत खेलना बंद किया ॥ ११६-१२० ॥ खिन्नचित्त होकर धर्मराज अपने भाईयोंके साथ घर गया। इतने में दुर्योधनने अपना दूत उसके पास भेज दिया। दूत जाकर नमस्कार कर इस प्रकार विज्ञप्ति करने लगा। हे धर्मपुत्र, मेरे मुखसे सुयोधन महाराज कहते हैं कि-बारह वर्षतक आप यहां निवास नहीं करे अर्थात् जबतक बारह वर्ष पूर्ण नहीं होंगे तबतक आपका निवास वनमें ही होना चाहिये। यदि आप यहां ही रहेंगे तो उससे सुख नहीं होगा। सुखकी इच्छा करनेवाले आप वनमें निवास करें। बारह वर्षतक आपका कोई नाम न जान इस तरह आप सुखकी प्राप्तिके लिये रहें। इसके अनंतर तेरहवां वर्ष आप गुप्तरूपसे व्यतीत करें ॥१२१-१२५॥ [ द्रौपदीका घोर अपमान ] स्थिराशयवाले अर्थात् दृढ निश्चयवाले आप इस रमणीय रात्रीमें आज मत ठहरे। यदि यहां रात्रीमें आप रहेंगे तो आपके ऊपर अनर्थ गुजरे बिना नहीं रहेगा। इस प्रकार दूतने दुर्योधनका अभिप्राय कहा और वह अपने घर चला गया। इतनेमें दुष्ट दुःशासनने द्रौपदीके घरमें प्रवेश किया। और कमलमें निवास करनेवाली साक्षात् महालक्ष्मीके समान द्रौपदीको उसके घरसे केशराशि पकडकर वह ले जाने लगा ॥ १२६-१२८ ॥ यह अधम कार्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002721
Book TitlePandava Puranam
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorJindas Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1954
Total Pages576
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, Story, & Biography
File Size15 MB
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