________________
षोडशं पर्व
३३१ विनानया नरत्वं हि निष्फलं निश्चितं मया । अतः केनाप्युपायेन करोमीमा खवल्लभाम् ॥३५ इत्यातयं स पप्रच्छ पार्थो दामोदरं मुदा । कस्येयं तनुजा साक्षाल्लक्ष्मीरिव सुलक्षणा ॥३६ हरिराह विहस्याशु किं न वेत्सि धनंजय । सुभद्रा नामतः कम्रा स्वसा मे रूपशालिनी॥ पार्थः प्राह हसित्वाथ ममेयं मातुलात्मजा । परिणेतुं मया योग्या मत्तमातङ्गगामिनी ॥३८ अभाणीद्भास्वरो भोगिमर्दनश्च धनंजय । दत्तेयं च मया तुभ्यं गृहीत्वा गम्यतां त्वया ॥ इत्याकर्ण्य सुकौन्तेयस्तदाशासक्तमानसः । क्षणं तस्थौ पुनस्तस्यास्यपचं संविलोकयन् ॥४० तस्याकूतं परिज्ञाय मुरजिन्मृदुमानसः । स्वस्यन्दनमदात्तस्मै वायुवेगाश्ववोगनम् ॥४१ सुभद्रां सन्मुखीकृत्य नानोपायैर्धनंजयः । तदासक्तां विधायाश्वारोपयत्स्यन्दनं निजम् ।। सरथः पाण्डवस्तूर्ण कन्यां तां कनकप्रभाम् । वायुवेगाश्ववेगेन चचाल वायुवेगवत् ॥४३ सुभद्राहरणं श्रुत्वा तदा यादवपुङ्गवाः । क्रुद्धाः संनाहसंबद्धा दधावुधन्विनो ध्रुवम् ।।४४ कवचेन पिधायाङ्गं दधावुः परिघान्विताः । केचित्कुन्तकराः केचिद्दीप्यत्कृपाणपाणयः॥४५
तो मैं अतिशय सुखी होऊंगा। इसके विना पुरुषपना निष्फल है, ऐसा मैंने निश्चय किया है । इस लिये इसे किसी भी उपायसे मैं अपनी वल्लभा बनाऊंगा" ॥३०-३५॥ ऐसा विचार कर वह अर्जुन दामोदर-कृष्णको आनंदसे पूछने लगा, कि "हे नारायण साक्षात् लक्ष्मीसमान सुंदर, उत्तम लक्षणवाली यह कन्या किसकी है ? ” कृष्ण हंसकर शीघ्र कहने लगे कि, “ हे धनंजय, तुम नहीं जानते हो? यह मेरी सौंदर्यशालिनी मनोहर सुभद्रा नामकी भगिनी है " । कृष्णके भाषणके अनंतर अर्जुन हंसकर कहने लगा, कि यह मेरे मामाकी कन्या है, मत्त हाथीके समान गतिवाली यह कन्या मुझे विवाह करने योग्य है" ॥ ३६.-३८॥
[ सुभद्राहरण ] कालिया नागका मर्दन करनेवाले तेजस्वी कृष्णने कहा कि "हे धनंजय मैंने यह कन्या तुझे दी है। इसको लेकर तुम जा सकते है"। यह कृष्णका भाषण सुनकर उसकीसुभद्राकी आशासे आसक्तचित्तवाला अर्जुन क्षणपर्यन्त कृष्णका मुखकमल देखते बैठा। उसके अभिप्रायको जानकर-मृदु अन्तःकरणवाले, मुरराक्षसको जीतनेवाले श्रीकृष्णने वायुके समान वेगवाले घोडोंसे जिसको वेग उत्पन्न हुआ है ऐसा रथ अर्जुनको दिया। अनेक उपायोंसे धनंजयने सुभद्राको अपने अनुकूल करके अपनेमें आसक्त बनाया, और अनंतर अपने रथपर सुवर्णके समान कान्तिवाली उस कन्याको शीघ्र उसने बैठाया। रथसहित अर्जुनने वायुवेगके समान घोडोंके वेगसे वायुवेगके समान गमन किया ॥ ३९-४३ ॥
उस समय सुभद्राका हरण अर्जुनने किया यह वार्ता सुनकर श्रेष्ठ यादव राजा कुपित हुए, और कवच पहनकर धनुर्धारी वीर निश्चयसे उसके-अर्जुनके पीछे पीछे भागने लगे ॥ ४४ ॥ कईक योधा लोक कवचसे अपना शरीर ढंककर और हाथमें परिधानामके शस्त्र लेकर दौडने लगे।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org