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पाण्डवपुराणम्
पाण्डवाः कौरवास्तत्र राज्यार्धा विभज्य च । वसुंधरां हयांस्तुङ्गान्दन्तिनो मदमेदुरान् ॥२ रथान्सार्थांस्तथा योन्लक्ष्मीकोशं परं समम् । अर्घा भुञ्जते सर्वेऽन्योन्यं प्रीतिमुपागताः ॥ ३ अथेन्द्रपथमावास्य स्थानीयं तत्र सुस्थिरः । युधिष्ठिरः स्थिरं तस्थौ स्थगिताशेषशात्रवः ॥४ तत्रैवावास्य विपुलं पुरं श्रीविपुलोदरः । नाम्ना तिलपथं पथ्यं संतस्थे पृथुमानसः ||५ पार्थः सुनपथे व्यर्थी कुर्वन्वैरिनरेश्वरान् । पालयन्परमां पृथ्वीं तत्र तस्थौ स्थिराशयः ॥ ६ नकुलः सफलं कुर्वन् कुलं जलपथस्थितः । वणिक्पथपुरे प्रीत्या सहदेवः स्थितिं व्यधात् ॥७ एवं स्वस्वनियोगेन पाण्डवाः परमोदयाः । भुञ्जते परमां लक्ष्मीं सदा सातसमैषिणः ॥८ युधिष्ठिरेण भीमेन याच पूर्व पुरे पुरे । परिणीताः समानीता राजपुत्र्यस्तदाखिलाः ||९ कौशाम्ब्याश्च समानीय विन्ध्यसेनसुतां पराम् । तया युधिष्ठिरः प्राप परमं पाणिपीडनम् ॥ भीमादयो भुवं पान्तो युधिष्ठिरनियोगतः । भजन्तः परमं सातं तस्थुः सेवकवत्सदा ॥११ धनैर्धान्यैर्हिरण्यैश्च न हि तेषां प्रयोजनम् । परं साधनसंवृद्ध प्रयोजनमभूत्तदा ॥ १२ दन्तावलतुरङ्गाणां वर्धनं विदधुर्ध्रुवम् । कौन्तेयाः कृतितां प्राप्ता विकसन्मुखपङ्कजाः ॥ १३
[ पाण्डवादिकोंका इंद्रपथादिकों में निवास ] सर्व पाण्डव और कौरव उस हस्तिनापुरमें राज्यका आधा आधा विभाग करके आपसमें स्नेहसे रहने लगे । पृथ्वी, ऊंचे घोडे, मदोन्मत्त हाथी, धन, शस्त्रादिकोंसे सहित रथ, योधागण, लक्ष्मी, कोश, इन सब उत्तम पदार्थों का आधा आधा विभाग कर उपभोग लेने लगे ॥ २-३ ॥ जिन्होंने सर्व शत्रुओं को स्थगित किया है ऐसे सुस्थिर
वाष्ठिर इन्द्रपथ नामक नगर बसा कर उसमें स्थिरतासे रहने लगे ॥ ४ ॥ जिनका मन उदार है, ऐसे श्रीविपुलोदर अर्थात् भीमसेन उसी कुरुजांगल देशमें लोगोंको सुखकर एस तिलपथ नामक बड़े नगरमें रहने लगे ॥ ५ ॥ वैरी राजाओंको व्यर्थ करनेवाला, गंभीर आशयवाला, अर्जुन, उत्तम पृथ्वीको पालता हुआ सुनपथमें रहने लगा || ६ || अपने कुलको सफल करनेवाला नकुल
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जलपथ ' नामक नगर में रहने लगा और सहदेव वणिक्पथ नामक नगर में प्रेमसे रहने लगा ॥ ७ ॥ इस प्रकार उत्तम वैभववाले वे पाण्डव अपने अपने नियोग के हक के अनुसार उत्तम राजलक्ष्मीका उमभोग लेने लगे । वे सब पाण्डव हमेशा सब लोगोंको सुख प्राप्त होवे ऐसी इच्छा रखते थे ॥ ८ ॥ far और भीम पूर्वकालमें जिनके साथ विवाह किया था उन संपूर्ण राजकन्याओं को वे वहीं ले आये ॥ ९ ॥ कौशाम्बीसे विन्ध्यसेन राजाकी सुन्दर कन्याको लाकर उत्तम विवाह किया || १० | भीमादिक युधिष्ठिरकी आज्ञासे पृथ्वीका पालन करते थे । उत्तम सुखोंको भोगते हुए हमेशा उसके सेवकके समान रहते थे । उनको धन, धान्य, सुवर्णादिपदाकी आवश्यकता नहीं थी । परंतु अपना सन्य बढानेका प्रयोजन उनको मालूम था । वे हाथी और घोडोंका सैन्य निश्चयसे बढाने लगे। जिनका मुखकमल प्रफुल्ल है ऐसे वे कुन्तीके पुत्र अब
युधिष्ठिर ने उसके साथ
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