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________________ २९२ पाण्डवपुराणम् निशाचरः पुनः क्रोधात्पृष्टो तेन हतस्तदा। अस्रपो निस्त्रपः पाप्मा पतितोऽपि समुत्थितः ॥ क्रव्यादं तं समुत्सार्य खेचरो भीमसन्मुखम्। युयुधे युद्धसंबद्धो विधुरं कर्तुमुद्यतः॥ ५९ क्रव्यादक्रममाक्रम्य पादघातेन पातितः। क्रव्यादो भीमसेनेन पृष्टौ संचूर्णितः क्षणात् ॥ खेचरोऽपि क्षणार्धेन चूर्णितस्तेन भूभुजा । दुःखीभूतो बलातीतः कृतोऽभूत्परवेपथुः ॥६१ ततः प्रणम्य भीमेशं संक्षमाप्य खगेश्वरः। सिद्धविद्योगमद्नेहं गृहीत्वा तद्गुणान्परान् ॥६२ समुत्थितेन ज्येष्ठेन हिडिम्बाडम्बरेण च । आपादिता सुभीमेन सहपाणिप्रपीडनम् ॥६३ तया सह सुखं भेजे पावनिर्विपुलं वरम् । सर्वे ते तत्र संतस्थुर्दीर्घघस्रानघातिगाः ॥६४ हिडिम्बा तेन भुञ्जाना भोगान्गर्भ दधौ वरम् । पूर्णे काले सुतं लेभे ज्ञास्यमानपराक्रमम् ॥ अयोजयत्सुतं भीमः प्रवरं घुटुकाख्यया । लक्षणेळञ्जनैः पूर्ण स सुतः प्रथितो भुवि ॥६६ ततस्ते निर्गतास्तूर्ण नृपाः सत्वरमानसाः। भीमाख्यं विपिनं प्रापुः परमश्वापदाकुलम् ॥६७ यत्रास्ते दुर्धरो दुष्टो विपत्कारी सुजन्मिनाम् । भीमासुर इति ख्यातो भुजदण्डबली महान् ।। कुर्वन्कलकलारावं विरावघनगर्जितः । निर्जगाम निजस्थानात्स तान्वीक्ष्य समागतान् ॥६९ जगाद तांस्तदा देवः किमर्थं यूयमागताः। आस्माकीनं वनं वेगादपूतं कर्तुमिच्छवः ।।७० भीमराजाने लात मारी, और उसको गिराया तथा उसकी पीठका राजाने क्षणात् चूर्ण कर डाला। तदनंतर विद्याधरकोभी भीमसेनने तत्काल खूप पीटा। तब वह दुःखित हुआ। उसकी सब शक्ति गलित हुई और वह थरथर कांपने लगा। तदनंतर उस विद्याधरने भीमराजको प्रणाम किया, और क्षमायाचना की। उसी समय उसको विद्याप्राप्ति हुई, और वह उसके गुणोंको ग्रहण कर अपने घरको चल दिया ॥ ५१-६२ ॥ जागकर उठे हुए ज्येष्ठ भाई युधिष्ठिरने आडम्बरसे भीमके साथ हिडिम्बाका विवाह करवाया। हिडिम्बाके साथ भीम विपुल और उत्तम सुख भोगने लगे। पापसे दूर रहनेवाले युधिष्ठिरादिक सब भाई उस वनमें बहुत दिन सुखसे रहे । भीमके साथ भोगोंको भोगती हुई हिडिम्बाने उत्तम गर्भको धारण किया, और पूर्ण काल होनेपर जिसका पराक्रम जगतमें प्रसिद्ध होनेवाला है, ऐसे पुत्रको जन्म दिया। उस उत्तम पुत्रको भीमने घुटुक नामसे योजित किया अर्थात् उसका 'घुटुक' नाम रक्खा। लक्षण और व्यंजनोंसे पूर्ण वह घुटुक पुत्र इस संसारमें प्रसिद्ध हुआ ॥ ६३-६५ ॥ [ भीमासुरमर्दन] तदनंतर वे पाण्डव भूपाल उस वनसे निकले और त्वरायुक्त चित्तसे 'भीम' नामक वनमें जा पहुंचे। वह अतिशय क्रूर सिंहादि हिंस्र पशुओंसे भरा हुआ था। उस वनमें भीम नामक असुर रहता था। उसको वश करना कठिन था। वह दुष्ट था। अच्छ स्वभाववाले प्राणियोंको वह सताता था। उसके बाहुमें प्रचण्ड बल था। पाण्डवोंको आये हुए देखकर वह असुर अपने स्थानसे बाहर आया। मेघकी गर्जनाके समान कल कल शब्द करने लगा। यह देव इस प्रकार उन पाण्डवोंसे भाषण करने लगा। " हे मनुष्यों तुम यहां क्यों आये हो ? क्या Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002721
Book TitlePandava Puranam
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorJindas Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1954
Total Pages576
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, Story, & Biography
File Size15 MB
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