________________
२६४
पाण्डव पुराणम्
अन्योपायं समाचक्ष्व विचक्षण सुखप्रदम् । श्रुत्वेति वायविर्वाचमुवाच चतुरोचिताम् ||३०९ नन्वेव रोचते तुभ्यं न चेत्पार्थः समर्थवाक् । तत्तृप्त्यै दीयतां देव यथा सा स्यात्सुविग्रहा ।। श्रुत्वैवं स निजं शीर्षमाकम्प्य सुकृपापरः । अवादीद्विदिताशेषवृत्तान्तः श्रीयुधिष्ठिरः || ३११. हा प्रातः पावने भीम विपुलोदर सुन्दर । किमिदं गदितं निन्द्यं त्वया दीप्तिसुखापहम् ॥ प्रचण्डः पाण्डवः पार्थः प्रसिद्धः पृथिवीभुजाम् । अजेयः परिपन्थीशैर्धनुर्वेदविशारदः ॥ ३१३ अस्मिन्सति निजं राज्यं कदाचित्पुनरेष्यति । यतोऽयं दोर्बली बाल्याद्विनयं प्रापयन्द्विषः ॥ शब्दवेधी सुधानुष्कः सधर्मा धृतिधारकः । धनंजयो धृतानन्दो न हन्तव्यः कदाचन ॥ ३१५ एवं जननी देया कुन्ती कमलकोमला । यतः स्वास्थ्यं च सर्वेषां पाण्डवानां हितात्मनाम् || मा भाद्भीम सद्भ्रातरित्येवं जननी यतः । मान्या जनैः सदा पूज्या जन्मदात्री दयावहा ।। यया वयं निजे गर्भे नवमासान्धृता पुनः । जन्मलाभं शुभं दत्वा क्षालिताः पालिताः पुरा ।। जननीयं जगन्मान्या कथं हिंस्या हितार्थिभिः । यतस्तु जगति ख्यातैर्माता तर्थि प्रकथ्यते ॥
रहित चित्तवाले अतिभयंकर भीम, हे भव्य, जिसमें दया नहीं है ऐसा भाषण तुम मत करो । हे चतुर, सुखदायक दूसरा उपाय कहो। " इस प्रकारसे भाषण सुनकर चतुरोंको योग्य ऐसा भाषण वायुपुत्र बोलने लगा ॥ ३०८-३०९ || “हे भाई यदि यह उपाय आपको पसंद नहीं है, तो समर्थ वचनवाला अर्जुन उसकी तृप्तिके लिये दे देना, जिससे वह देवी हमारा विघ्नविनाश करेगी" ॥३१०॥ इस प्रकारका वचन सुनकर अतिशय दयालु, सत्र वृत्तान्तको जाननेवाले श्रीयुधिष्ठिर मस्तक धुनते हुए बोलने लगे । " हे भाई हे पवित्र भीम, हे सुन्दर विपुलोदर, तुमने दीप्ति और सुखको नष्ट करनेवाला निन्द्य भाषण क्यों किया? यह पार्थ - अर्जुन संपूर्ण राजाओंमें प्रसिद्ध है । यह प्रचण्ड पाण्डव है । शत्रुराजाओंके द्वारा अजेय है । शत्रुराजा इसको जीतनेमें असमर्थ हैं । धनुर्वेद में अतिशय प्रवीण है । इसके होनेसे अपना नष्ट हुआ राज्य कदाचित् फिर प्राप्त हो सकेगा, क्यों कि यह बाहुबली है, बाल्यसेही इसने शत्रुओं को विनययुक्त किया है। यह शब्दवेधी, उत्तम धनुर्धर है, धर्माचरणमें तत्पर है, और धैर्यधारी है । यह धनंजय आनंदको धारण करनेवाला है, इसे कदापि मारना योग्य नहीं है " ||३११-३१५ ॥ यदि अर्जुनकोभी नहीं मारना चाहिये ऐसा आप कहते हो तो कमलके समान कोमल इस माताको तुण्डकेि लिये दे डालो जिससे हित-स्वभावी सब पाण्डवोंको स्वास्थ्य प्राप्त होगा । " हे भीम, हे सज्जन भाई, ऐसा तू मत बोल | कारण जननी लोगों को सदा मान्य, पूज्य होती है । माताने जन्म दिया है और वह दया करने योग्य है । इसने अपने गर्भ में नौ मासतक हमको धारण किया है । पुनः जन्मका लाभ देकर इसने नहलाधुलाकर हमारा पालनपोषण किया है। माता जगन्मान्य होती है, हितार्थी लोक उसकी हिंसा कैसी करेंगे। क्योंकि जगत प्रसिद्ध पुरुष माताको तीर्थ कहते हैं ॥ ३१६ - ३१९ ॥ हे भीम, तू दयाका
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org