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द्वादशं पर्व
२६३ उपकारपरोऽस्माकं ह्रादिनीतारणे क्षमः । नायं हन्यः कथं हन्या उपकारकरा नराः ॥२९७ विपुलोदर विद्वांस्त्वमन्योपायमुपायवित् । विचारय विचारज्ञ यत्स्याम सुखिनो वयम् ॥२९८ इत्याकर्ण्य सुवेगेन वायविर्वचनं जगौ । विहस्य हर्षनिर्मुक्तो निर्मलोद्भुतविक्रमः ॥२९९ त्वं नाथ देहि निस्तन्द्रस्तुण्डीवप्त्यर्थसिद्धये । संगराकुशलं कौल्यं नकुलं कुलपालिनम् ॥ सहदेवं दयातीतं व्यतीतं कुलपालनात् । हत्वा दत्स्व सुशुल्कार्थ तुण्ड्यै तृप्तिसमृद्धये ॥३०१ अनयोरेकतो नाथ बलिं दत्वा सुखाश्रिताः । व्रजामः सरितस्तीरं पुण्यवायुप्रणोदिताः॥ निशम्य महतां मान्यो मोहितो महिमाश्रितः । इति ज्येष्ठा विशिष्टात्माचष्टे स्म वचनं वरम्।। हा तात तात भीमेति भणितं किं भयावहम् । आत्मजाविव संप्रीताविमौ मोहकरौ मम ॥ मया कथं प्रहन्येते सोदरौ दरदारको । इमौ निजात्मदेशीयौ सदा प्रीतौ सुखात्मकौ ॥३०५ इमौ हत्वा गतेऽस्माकमपकीर्ति दुरुत्तराम् । करिष्यन्ति यतो लोका आवालं लोकपालिनः ॥ भूपोऽयमनुजौ दवा देव्यै दीप्तकरौ गतः । वल्लभं जीवितं मत्वा धिग्जीव्यं सुदयातिगम् ॥ हे भीम हे दयातीतमानसातिभयंकर । न भण्यं भणनं भव्य यत्र जीवदया न तत् ॥३०८
दूर है, पूर्व जन्मके पापसे दुःखी है। इसलिये यह अतृप्त है, दयालु लोग इसे कैसे मारेंगे ? हमें नदीसे तारनेके लिये यह समर्थ है। इसका हमारे ऊपर यह उपकारही है। इसलिये इसे मारना योग्य नहीं है। उपकार करनेवाले मनुष्यको मारना कैसे योग्य होगा ? अर्थात् उनको मारना महापापका कारण है। हे विपुलोदर तू विद्वान है, उपाय जानता है । हे विचारज्ञ, ऐसे दूसरे उपा. यका विचार कर कि जिससे हम सर्व सुखी होंगे।" यह अपने बड़े भाईका वचन सुनकर हर्षरहित निर्मल-निष्कपटी, अद्भुत पराक्रमी वायुपुत्र भीम वेगसे हंसकर इस प्रकार बोला। “हे प्रभो, आलस्यको छोडकर, तुण्डीदेवीकी तृप्तिकी साधनाके लिए युद्धचातुर्यरहित, कुलीन तथा कुलरक्षक ऐसा नकुल
और कुलरक्षण न करनेवाला दयारहित ऐसा सहदेव इन दोनोंमेंसे किसी एकको मारकर अपना संतोष बढानेके लिए तुण्डीदेवीको बलि दे दीजिए। जिससे हम पुण्यवायुसे प्रेरित होकर सुखपूर्वक नदीके किनारेपर पहुंचेंगे।" यह भीमका वचन सुनकर महापुरुषोंको मान्य, प्रभावका आधार, विशिष्टात्मा, विशिष्ट दयादि स्वभावयुक्त, ज्येष्ठ भाई युधिष्ठिरने मोहसे इस प्रकार उत्तम वचन कहे ॥ २९९३०३ ॥ " हे वत्स ! भीम, ऐसा भयंकर भाषण तू क्यों बोल रहा है । ये दो छोटे भाई दो पुत्रोंके समान प्रेमयुक्त और मोह उत्पन्न करनेवाले हैं। ये अपने दो छोटे भाई भीति दूर करनेवाले अपनी आत्माके समान हमेशा प्रीतियुक्त और सुखी हैं। ये मेरे द्वारा कैसे मारे जायेंगे । इनको मारनेपर बालकसे लेकर राजातक सबलोग हमारी दुर्निवार अपकीर्तिको सब जगतमें प्रसिद्ध करेंगे । यह राजा अपने तेजस्वी दो छोटे भाई देवीके लिये बलि देकर और अपना जीवित प्रिय मानकर यहांसे चला गया ऐसा लोक कहेंगे। ऐसे दयाहीन जीवितको धिक्कार हो. ॥ ३०४-३०७ ॥ हे दया
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