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पाण्डवपुराणम् सलिले विपुलेनैव न लभेमहि धीवराः । किं च लभ्यं प्रदातव्यं न्यायोज्यं विश्रुतो भुवि ॥ धीवरा धृतये प्रोचुः श्रुत्वा वाक्यं नरेशिनः । श्रोतव्यं श्रूयतां श्रोतःसुखकद्देववल्लभ ॥२६५ नतृप्यति पयःपूरैः सजितैः खजकैरपि। प्राज्यैराज्यैर्वरानैश्च पक्वान्नस्तुण्डिकासुरी॥२६६ . निरवद्यैः सुनैवेद्यैः सद्यो मद्यैन तृप्यति । तुण्डिका चण्डिका खण्डप्रचण्डबलितृतिका ॥२६७ मनुष्यमांसतो मत्ता तृप्तिमेति बुभुक्षिता । अतो नरं संप्रदाय तृप्तिमेतु सुतत्त्वतः ॥२६८ तृप्तामेनां विधायाशु यात यूयं सरित्तटम् । अन्यथानर्थसंपत्तिरित्यवादीसुधीवरः ॥२६९ निशम्यैवं वचस्तस्य संक्षुब्धाः पाण्डुनन्दनाः। अतर्कयनिजं वीक्ष्य मरणं समुपस्थितम् ।। अहो वामे विधौ नूनं कथं दुःखक्षयो भवेत् । कर्मतो बलवान्नान्यो वर्तते भववासिनाम् ॥ पूर्व कौरवसंधेन सत्रं युद्धे जयं गताः। ततः प्रज्वलिता लाक्षागृहादेवाद्विनिर्गताः ॥२७२ इदानीं तरणीयोगे स्वयं च समुपस्थिते । वयं तुण्ड्याः स्वयं यामो मरणं शरणं द्रुतम् ॥ महानिष्टाद्विनिःक्रान्ता लघुतो मृत्युभागिनः । उदन्वज्जलमुल्लङ्घ्य यथा जलबिले मृतिः॥
देकर उसका हम आदर करेंगे। हे धीवर, यहां विपुल पानीके स्थलहीमें वह नैवेद्य हमें कहांसे प्राप्त होगा ? तथा जो चीज मिलती है वह देनी चाहिये यह न्याय पृथ्वीमें प्रसिद्ध है ॥ २६१२६४ ॥
राजा युधिष्ठिरका वाक्य सुनकर धीवर, उसे संतोषके लिये इस प्रकार बोलने लगे । “देवके समान प्रिय हे राजन्, कानको सुख देनेवाला सुननेलायक हमारा वक्तव्य आप सुने ॥ २६५॥ " यह तुण्डीदेवता दूधके पूरोंसे तृप्त नहीं होगी, अच्छे खाजे पकानोंसेभी तृप्त नहीं होगी। उत्तम घीसे, उत्तम अन्नोंसे और पक्कान्नोंसेभी तृप्त नहीं होगी। यह देवता निर्दोष नैवेद्योंसें और तत्काल बनाये मद्यसे-ताजे मद्यसेभी तृप्त नहीं होती है। यह चण्डी तुण्डीदेवी प्रचण्ड और अखंड बलिसे तृप्त होती है। यह उन्मत्त भूखी देवता मनुष्यके मांससे तृप्त होती है । इस लिये मनुष्यबलि देनेसे यह परमार्थतया तृप्त हो जावेगी। इस देवताको तृप्त कर आप शीघ्र नदीके किनारेपर जा सकते हैं । अन्यथा अनर्थ-संकट प्राप्त होगा ऐसा धीवरने भाषण किया" ॥ २६६-२६९ ॥ - [भीमका बलिदानके विषयमें विनोद ] उसका वचन सुनकर पाण्डुपुत्र क्षुब्ध होगये । अपना मरण समीप आया हुआ देखकर वे विचार करने लगे-“दैव वक्र होनेपर दुःखका नाश नहीं होता है । संसारमें रहनेवाले-भ्रमण करनेवाले प्राणियोंको कर्मसे अधिक बलवान् कोई नहीं है। हमलोग प्रथमतः कौरवोंके साथ युद्ध कर उसमें विजयी हुए । तदनंतर कौरवोंने लाक्षागृहमें हमको जलानेका प्रयत्न किया; परंतु उस लाक्षागृहसे हम सुदैवसे निकल सके। इस समय नौकाका योग स्वयं प्राप्त हुआ और हम मरनेके लिये तुण्डीको शरण जा रहे हैं। बड़े अनिष्ट प्रसंगसे तो सुरक्षित रहे; परंतु छोटे अनिष्टसे अब हम मृत्युको प्राप्त होंगे। जैसे कोई समुद्रका पानी लांघकर
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