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पाण्डवपुराणम् दुर्योधनादयो रङ्कास्तावद्गर्जन्ति जर्जेराः । यावन्सां न च पश्यन्ति दर्दुरा वा भुजंगमम् ॥ निशम्येति वचस्तस्य कश्चिद्विबुधसत्तमः । उवाच वचनं वाग्मी विदिताखिलविष्टपः ॥२२३ नृपेन्द्र च्छिद्रमावीक्ष्य च्छलनीया महाद्विषः। घटिका छिद्रतो नूनं जलं हरति निर्जला॥ निश्छिद्राः कष्टतः साध्या दुर्लक्ष्या विबुधैरपि। मुक्ताफलानि प्रोतानि निश्छिद्राणि भवन्ति किम् अद्य कौरवा संदृप्ता संक्लृप्तजयसद्धलाः । शरीरजैबेलैमत्ता घोटकाविशेषतः ॥२२६ मानयन्ति न ते मत्ताः परान्बलविवर्जितान् । जानन्तश्च यथा तूर्ण नरा मद्यसुपायिनः॥ जरासन्धाश्रयाद्दता बलीयन्ते स्म कौरवाः। नृत्यन्ति दर्दुरा नागमूीव नागतुण्डिकात् ॥ जरासन्धाश्रयात्पूज्या पूजितास्ते नरेश्वरैः। यथा शिरसि सामान्याः स्थिताः कुन्तलराशयः।। अतो गन्तुं न युक्तं ते कौरवैर्बुद्धिसागर । योद्धं सत्रं पवित्रात्मन् कार्य कालविलम्बनम् ॥. जरासन्धसमं युद्धं यदा तव भविष्यति । तदा ते तव निग्राह्या वैरिणो हितसिद्धये ॥२३१ इदानीं कौरवैः सार्धं कृते युद्धे स क्रुध्यति । तदुत्थापनतः कार्य किं भवेत्सुप्तसिंहवत् ।।२३२
करते हैं। वैसे ही जबतक मुझे उन्होंने नहीं देखा है तबतक वे दीन, जर्जर, असमर्थ दुर्योधनादिक शब्द करते हैं" ॥२१९-२२२ ॥ इस प्रकारका कृष्णका वचन सुनकर जिसने जगतकी परिस्थिति जानी है ऐसा कोई श्रेष्ठ विद्वान् कहने लगा। "हे राजेन्द्र, छिद्र देखकर बडे शत्रुओंको पीडा देना चाहिये। जैसे निर्जल घटी छिद्र होनेसे पानीका ग्रहण करती है। जो छिद्ररहित हैं ऐसे मोती क्या दोरीमें पिरोये जाते हैं ? वैसे निश्छिद्र शत्रु कष्टसे जीते जाते हैं उनका स्वरूप विद्वानोंके द्वाराभी नहीं जाना जाता है।" ॥ २२३-२२५ ॥ " आज कौरव उन्मत्त हुए हैं, जयशाली उत्तम सैन्य उनके पास हैं, शारीरिक बलसे तो वे उन्मत्त हैं ही, परंतु हाथी घोडे इत्यादिकोंसे वे विशेषतः उन्मत्त हैं। बलरहित दूसरे राजाओंको तो वे मानते ही नहीं, और जानते हुए भी वे तत्काल मद्य पीनेवाले मनुष्यके समान भूल जाते हैं। जरासन्धके आश्रयसे वे कौरव अपनेको बलवान समझ रहे हैं। योग्य ही है, कि नागतुण्डिकसे-गारुडीके बलसे सर्पके मस्तकपर नाचनेवाले मैंडकके समान वे हैं। जरासन्धके आधारसे वे पूज्य हैं और राजाओंद्वारा पूजे गये हैं। जैसे कि मस्तकपरके सामान्य केशसमूह उसके आश्रयसे रहनेसे तैल, पुष्प मालादिकोंसे संस्कारित किये जाते हैं । इसलिये हे बुद्धिसमुद्र श्रीकृष्ण, कौरवोंके साथ लढनेके लिये जाना आपको योग्य नहीं हैं। इस समय कालविलंब करना ही अच्छा है।" ॥ २२६-२३० ।। " हे कृष्ण, जब जरासंधके साथ आपका युद्ध होगा तब ये कौरव वैरी आपकेद्वारा हितसिद्धिके लिये दंडनीय होंगे। इस समय आप यदि कौरवोंके साथ युद्ध करेंगे तो वह जरासंध क्रुद्ध होगा और निद्रित सिंहको जगानेके समान आपका कार्य होगा। इस लिये आप स्थिर होकर स्वस्थ रहें। योग्य काल आनेपर आप उनका नाश करेंगे ही।" इस प्रकार उस विद्वानने सब श्रेष्ठ ज्ञानी यादवोंको युद्धसे रोक दिया
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