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पाण्डवपुराणम्
खलीकुर्वन्ति लोका हि खलाः स्खलितमानसाः। सजनान्कटुकान्कि न यथा कुमारिकारसः।। इति निर्भसिता भूपा अधोवक्रास्तु कौरवाः। अभवनिर्दयानां हि का त्रपा धर्मधीश्च का ।।
तदा लोकाः समागत्य वह्निविध्यापनं व्यधुः।
शोकार्ता अर्तितः किं न कुर्वन्ति दुष्करां क्रियाम् ॥२०२ केचिद्रेणुर्भयमस्ता इति लोकाः सुलोकनैः। लोक्यन्तां तच्छरीराणि मृतावस्थां गतानि च ।। तदा तानि विलोक्याशु केचिदचुः शुचं गताः। अयं युधिष्ठिरः स्थेयानयं भीमो महाबलः ॥ सार्जुनश्वार्जुनो वर्यो नकुलोऽयं सुनिर्मलः । देवसेवासहश्चायं सहदेवः शुभाशयः॥२०५ सतीयं सुकुमाराङ्गी कुन्ती सत्कुन्तला वरा । निर्मला विपुलाप्येषां जननी दग्धदेहिका ॥ विदग्धा अर्धदग्धानि मांसपिण्डोपमानि च। शवानि तानि संवीक्ष्य बभूवुस्तत्समा इव ।। पुनः पुनः परावृत्य कुणपान्पावनान्नृपाः। आलोक्य निश्चिता जाताः पाण्डवा ज्वलिता इति।। तनिश्चये तदा लोकास्तहिने पानभोजनम् । व्यापारं पण्यवीथीनां तत्यजुर्गृहकर्म च ॥२०९ हाकारमुखरा लोका हाकारमुखराः स्त्रियः । तदाभवन्महाशोकाद्धाकारमुखरं पुरम् ॥२१० गान्धारी लब्धसंतोषा समृद्धा सर्वराज्यतः । सुतवर्धापनव्याजात्तदा चक्रे महोत्सवम् ॥२११
जिनका मन सदाचारसे भ्रष्ट हुआ है ऐसे दुष्ट लोग सज्जनोंको दुष्ट बनाते हैं। जैसे घीकुँवारका रस वस्तुओंको कडवी बना देता है। इस प्रकारसे निर्भर्त्सना किये गये कौरव राजा उस समय अधोमुख होकर बैठे । योग्यही है, कि जो निर्दय हैं उनको कैसी लज्जा उत्पन्न होगी,और उनको धर्मबुद्धिभी कहांसे आवेगी?
उस समय शोकपीडित लोगोंने आकर अग्निको शान्त किया। दुःखसे मनुष्य कौनसा दुष्कर काम नहीं करते हैं ॥१९७-२०२॥ भययुक्त कुछ लोगोंने कहा मरे हुए उन पाण्डवोंके शरीर अच्छी तरह देखो। तब उनके शरीर देखकर कई लोग तत्काल शोक करने लगे। वे कहने लगे यह बडा शरीर युधिष्ठिर है। यह महासामर्थ्यवान् भीम दीखता है। यह सरल विचारका श्रेष्ठ अर्जुन है। यह अतिनिर्मल बुद्धिका नकुल है। शुभ विचारवाला देवकी सेवा करनेवाला यह सहदेव है । उत्तम केशवाली,सुकुमार शरीर जिसका है ऐसी विपुल-अतिशय निर्मल, जिसका देह जल गया है ऐसी इन पाण्डवोंकी यह माता कुन्ती है । वे चतुर लोग आधे जले हुए मांसपिण्डोंके समान उन शवोंको देखकर उनके समान हो गये। पुनः पुनः उन पवित्र प्रेतोंको नीचे ऊपर कर 'पाण्डव जल गये' ऐसा राजाओंने निश्चय किया ॥२०३-२०८॥ पाण्डवोंकी ही मृत्यु हो गयी है ऐसा निश्चय होनेपर उस दिन लोगोंने खाना,पीना, तथा बजारमें व्यापार, और इतर गृहकार्य सब बंद रखे। पुरुष हाहाकार करने लगे। स्त्रियाँ हाहाकार कर रोने लगी। उस समय समस्त नगर हाहाकारसे वाचाल बन गया ॥२०९-२१०।। गान्धारीको संतोष हुआ। वह सर्व राज्यकी प्राप्ति होनेसे अपनेको समृद्ध समजने लगी और पुत्रोंकी बधाई
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