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द्वादशं पर्व इति क्षणदुष्टाङ्गा योद्धं संनद्धमानसाः। दुर्योधनादयो योधा विदधुः संधिक्षणम् ॥३०. क्रुध्यन्ति स्म महाक्रोधाद्वधा अपि विरोधिनः । पाण्डवास्तद्वचः श्रुत्वा रुकुटीभीषणाननाः॥ चत्वारश्चतुराश्वोचुवालयन्तोऽचलां चिरम् । अचला भीमसेनाद्याः संचरन्त इतस्ततः ॥३२ . काकैरिव वराकैः किं सदा शङ्कासमाकुलैः । एभिरस्मासु शक्तेषु सत्सु सर्वैरपि स्फुटम् ॥३३ तदा भीमोऽवदद्भातर्भस्मयामि क्षणार्धतः । इमान् दहेन किं दाद्यं विस्फुलिङ्गस्फुरद्रुचिः॥ शतमप्येकवारेण क्षणादुत्क्षिप्य सागरे। क्षिपामि क्षीणचिचानामेषां भीमोगदीदिति ॥३५ अशीशमत्तदा भीमं भीतिदं भीषणाकृतिम् । ज्येष्ठः सामोक्तिभिनीरैज्वलन्तं ज्वलनं यथा ॥ अर्जुनोऽर्जुनवद्दीप्तो जज्वाल क्रोधवह्निना। दीप्तेन कौरवोक्तेन दारुणा ज्वलनो यथा ॥३७ बाणेनैकेन शक्तेन शतमेषां सुदारुणः । दारयेयं दृषत्खण्डो यथा काकशतं सकृत् ॥३८ । इमे तावन्मदान्मुक्तमर्यादाश्च भवन्त्यहो। नाहं क्रुद्धोर्यमा यावत्तमांसीव घनानि च ॥३९
ज्यका उपभोग हम श्रेष्ठ लोग लेंगे। यदि ऐसा न होगा तो समझना चाहिये की न्याय नष्ट हुआ है। ये प्रचण्ड पाण्डव पांच हैं तो भी आधेके वे क्यों अधिकारी हैं? और हम सौ भाई होकरभी आधे साम्राज्यके अधिकारी हैं " ऐसा विचार कर दूषणसे दुष्ट है आत्मा जिनकी ऐसे वे कौरव-दुर्योधनादिक योद्धा युद्ध के लिये सन्नद्धचित्त हो गये। और उन्होंने सन्धिमें दूषण उत्पन्न किया ॥ २६३० ॥ विद्वान होकरभी विरोधी पाण्डव उनका वचन सुनकर अतिशय क्रुद्ध हो गये और क्रोधसे उनकी भौंहें ऊपर चढ गई जिससे उनका मुख अतिशय भयंकर दिखने लगा ॥ ३१ ॥
[ भीमादिकोंकी कोपशान्ति ) अपने ध्येयपर स्थिर रहनेवाले भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव ये चारों चतुर भाई क्रोधसे इतस्ततः घूमने लगे और अपने चलनेसे जमीनको कम्पित करके इसतरह बोलने लगे। "हम समर्थ होनेसे हमेशा डरनेवाले, दीन कौवेके समान ये दुर्योधनादिक सब मिलकरभी हमारा क्या नुकसान करेंगे ? हम स्पष्ट कहते हैं कि वे हमारा बालभी बाँका न कर सकेंगे" । भीमने कहा कि, “हे भाई मैं इन कौरवोंको क्षणार्धमें भस्म करुंगा। जिसकी कान्ति बढती है ऐसा एक अग्निका कण जलाने योग्य लकडी आदि वस्तुको क्या न जलायेगा ? जिनका चित्त क्षीण है तुच्छ है ऐसे सौ कौरवोंकोभी एक साथ उठाकर एक क्षणमें मैं समुद्रमें फेक दूंगा। भीति देनेवाले, भीषण आकृतिवाले ऐसे भीमको प्रज्वलित अग्निको जैसे जलसे शान्त किया जाता है, वैसे ज्येष्ठने-युधिष्ठिरने शान्तिके भाषणोंसें शान्त किया । जैसे इन्धनसे अग्नि प्रज्वलित होता है वैसे मनको त्वेष उत्पन्न करनेवाले कौरवोंके भाषणसे अर्जुन चांदीके समान चमकने लगा और क्रोधाग्निसे प्रज्वलित हुआ । “ जैसे एकही पाषाण सैंकडो कौवोंको युगपत् भगाता है वैसे सामर्थ्ययुक्त एक बाणसेही भय उत्पन्न करनेवाला मैं इन सौ कौरवोंको विदीर्ण करूंगा ॥३२-३८॥ जब तक सूर्यका उदय नहीं होता है तबतक सांद्र अंधकार मर्यादा छोडकर आकाशमें फैल जाता है
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