SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 281
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २२६ पाण्डवपुराणम् सोऽवधिनाननेत्राढ्यो रत्नराशेर्गुणाकरः । निधूमज्वलनालोकात्कर्मकक्षहुताशनः ॥१२३ गजाकारं समादाय त्वद्र्मेऽवतरिष्यति । सोऽरिष्टनेमिसभामा धर्मसद्रथवर्तनात ॥१२४ श्रुत्वा सा प्रमदापूर्णा फलं स्वप्नसमुद्भवम् । हर्षोत्कर्षितचेतस्का दधौ रोमाशितं वपुः॥१२५ कार्तिकोज्ज्वलपक्षस्य षष्ठयां चाथ निशात्यये । उत्तराषाढनक्षत्रे तद्गर्भे संस्थितिं व्यधात् ।। तदाज्ञात्वा सुराः सर्वे स्वस्य चिह्वेन सत्वरम् । आगत्य गर्भकल्याणं कृत्वागुः स्वं स्वमास्पदम्।। श्रीः श्रियं ह्रीस्त्रपां धैर्य धृतिः कीर्तिः स्तुति मतिम् । बुद्धिलक्ष्मीश्च सौभाग्यं दधुस्तस्यामिमान्गुणान् ॥ १२८ काश्चिन्मजनकरिण्यः काश्चित्ताम्बूलदायिकाः। मङ्गलं कुर्वते काश्चित्काश्चित्संस्कारसाधिकाः॥ काश्चिन्महानसे पाकं कुर्वते रचयन्त्यपि । शय्यामुच्छीर्षवस्वाट्या पादसंवाहनं पराः॥१३० काश्चित्सिंहासनं चारु चकलाकलितं दधुः । काश्चित्सुगन्धद्रव्याणि पुरन्ध्य इव वै ददुः॥ काश्चिदाभरणोद्भासिकरास्तस्याः पुरः स्थिताः । कल्पवल्ल्य इवाभान्ति भाभारवरभूषणाः॥ काश्चिद्वासांसि क्षौमाणि प्रसूनस्तबकावहाः।माला रेजुर्ददत्योऽत्र व्रतत्य इव विस्तृताः॥१३३ उत्खातासिकराः काश्चिदङ्गरक्षाविधौ यताः। तदभ्यणे स्थिता रेजुश्वश्चला इव खस्थिताः॥ धारण करनेवाला, निधूम अग्निके दर्शनसे कर्मरूपी जंगलको अग्निके समान तुझे पुत्र होगा। वह गजाकार धारण कर तेरे गर्भमें आवेगा। वह धर्मरूपी रथको चलानेसे 'अरिष्टनेमि' नामको धारण करेगा ॥ ११८-१२४ ॥ आनंदसे परिपूर्ण, हर्षसे जिसका चित्त उमड आया है, ऐसी शिवादेवीका शरीर स्वप्नके फल सुनकर रोमांचयुक्त होगया। कार्तिक शुक्ल पक्षके षष्ठीके दिन रातकी समाप्तिके समय उत्तराषाढा नक्षत्रपर रानीके गर्भमें अहमिंद्रदेव आया ॥१२५-१२६ ॥ तब प्रभु माताके गर्भ में आये हैं ऐसा स्वकीय चिह्नसे जानकर देव तत्काल आगये और गर्भकल्याणविधि करके वे अपने स्थानको चले गये ॥ १२७ ॥ श्री देवताने कान्ति, हीने लज्जा, धृतिदेवीने धैर्य, कीर्ति देवताने स्तुति, बुद्धिदेवाने मति, लक्ष्मीने सौभाग्य ये गुण जिनमातामें स्थापन किये। कोई देवियां माताके स्नानके कार्यमें नियुक्त थी, कोई माताको ताम्बूल देती थी। कोई मङ्गलारति करती थी। तो कोई उबटन आदिक संस्कारसे माताको सुशोभित करती थी। कोई देवतायें पाकगृहमें-रसोई घरमें अन्न पकाती थी। कोई देवांगनायें शय्याकी रचना करके उसपर तकिया आदिक रखती थी। कोई सुराङ्गनायें माताके पैर दबाती थी। कोई अमरी गोल पादपीठ ? सुंदर सिंहासन चक्कला कलित (2) माताको बैठनेके लिये देती थी। और सुवासिनी स्त्रियोंके समान कोई देवतायें सुगंधित द्रव्य - इन आदिक माताको देने लगी। अलंकारोंसे जिनके हाथ तेजस्वी दीखते थे ऐसी कोई देवतायें उसके आगे खडी हो गई। कान्तिसंयुक्त उत्कृष्ट भूषणोंको धारण करनेवाली कोई देवतायें कल्पलताके समान दीखती थी॥ १२८-१३२ ॥ रेशमके वस्त्र तथा पुष्पके गुच्छोंको धारण करनेवाली, मालायें देनेवाली Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002721
Book TitlePandava Puranam
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorJindas Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1954
Total Pages576
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, Story, & Biography
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy