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(२३)
यहांसे निकल कर पाण्डव किसी महावन में पहुंचे । वहां दैवज्ञके कथनानुसार भीमको संध्याकार-पुरके अधिपति हिडिम्बवंशोद्भूत सिंहघोष राजाकी कन्या हिडिम्बाका लाभ हुआ । पाण्डव कुछ दिन वहां ही स्थित रहे । समयानुसार हिडिम्बाके पुत्र उत्पन्न हुआ, उसका नाम 'घुटुकै ' रक्खा गया । पश्चात् वहांसे भी चलकर पाण्डव भीम नामक वनमें स्थित भीमासुरको निर्मद करते हुए श्रुतपुरमें जा पहुंचे । वहां रात्रिको किसी वणिक्के गृहमें निवास किया। रात्रिमें वैश्यपत्नीको रोती देखकर कुन्तीने रोनेका कारण पूछा । उसने श्रुतपुरके राजा बकके मांसभक्षी होने, एक समय पशुमांसके न मिलनेपर मृत नरबालकका मांस देने और उसको उसका चस्का लगने, एतदर्थ बालकोंके मारे जाने तथा प्रतिदिन एक मनुष्यके देनेका नियम बनाने आदिकी सब कथा कह सुनाई । कुन्तीकी प्रेरणासे भीमने उसे वशमें कर नगरवासियोंके कष्टको दूर कियाँ । इससे प्रसन्न होकर नगरवासियोंने भीमका जय-जयकार किया और करोडोंका धन-धान्य भेटमें दिया । इससे पाण्डवोंने वहां जिनमन्दिरका निर्माण कराया और वर्षा ऋतुके उपस्थित होनेपर चार मास तक वहीं धर्मध्यानपूर्वक निवास कियाँ ।
वर्षाकालके समाप्त होनेपर पाण्डव वहांसे चम्पापुरी गये । वहांका राजा कर्ण था। यहां वे एक कुम्हारके घरमें रहे। भीमने आलानसे छूटे हुए एक मदोन्मत्त हाथीको वशमें किया । वे वहां कुछ दिन रहकर वैदेशिकपुर पहुंचे। यहां राजा वृषध्वजके दिशावली प्रियासे उत्पन्न एक दिशानन्दा नामकी कन्या थी । युधिष्ठिर आदिको छोड़कर अकेला भीम भिक्षार्थ विप्रके वेषमें नगरमें गया ।
१ हरिवंश पुराणमें (४५-११३) में 'विन्ध्यमाविशत्' ऐसा निर्देश है ।
२ ह. पु. (४५, ११५-१६) में उसके हृदयसुन्दरी और हिडंबसुन्दरी ( ११२ ) ये दो नाम निर्दिष्ट हैं । यहाँ उसके पुत्र होनेका उल्लेख नहीं है ।
३ विष्णुपुराण (४, २०, ४५) और चम्पूभारत (पृ. ५८ श्लोक ३६ ) में भीमसेनसे हिडिम्बाके घटोत्कच नामक पुत्रके उत्पन्न होनेका निर्देश पाया जाता है ।
४ हरिवंशपुराण के अनुसार पाण्डव श्लेष्मान्तक वनमें स्थित तापसाश्रमसे निकलकर तापस वेषको छोड़ द्विजके वेषमें ईहापुर पहुंचे। वहां भीमकेद्वारा नरभक्षी भृग (वृक और झंग शब्दोंमें व्यत्यय हुआ प्रतीत होता है । ) राक्षसका दमन किये जानेपर निर्भयताको प्राप्त हुए नागरिकोंने पाण्डवोंकी पूजा की। (४५, ९४-९५)। इतना मात्र वृत्त यहां पाया जाता है। बकासुरका विस्तृत वृत्त दे. प्र. सूरिके पां. च. (७, ४०९-७०५) में पाया जाता है।
५ देवप्रभ सूरिविरचित पाण्डवपुराणके अनुसार पाण्डव कृष्णके साथ नासिक्य नगर (नासिक गजपंथ) गये। वहां उन्होंने माताके द्वारा निर्मापित चन्द्रप्रभ जिनेंद्रकी विकसित कमलपुष्पोंके साथ मणिमयी अर्चा की। ( ७, ११२-११६)
६ हरिवंशपुराणमे कुम्हारके घरमें रहनेका उल्लेख नहीं है। इसके अनुसार पाण्डव ईहापुरसे त्रिशृङ्गपुर और फिर वहांसे चम्पापुरी गये । ( ४५, १०५-१०६)
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