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________________ २१६ पाण्डवपुराणम् गृहकार्य परित्यज्य ता भर्तृभोजनादिकम् । स्तन्यदानं शिशूनां च यान्ति तं द्रष्टुमाकुलाः ॥ इति लोकाः समावीक्ष्य सर्व भूपं न्यवेदयन् । नृपोऽप्येतत्समाकर्ण्य तद्रक्षामकरोत्कृती ॥९ यथेष्टं निःकुटे क्रीडां कर्तुं संस्थाप्य भूपतिः । कुमारं बहिरुद्याने गच्छन्तं च न्यवारयत् ॥ १० क्रीडन्तं निःकुटे तं च समाख्यात्क्षुब्धमानसः । दासो निपुणमत्याख्यो बहिर्याननिषेधनम् ॥ श्रुत्वावादीत्स नाहं निषिद्ध इति चेटकम् । सोऽवोचत्तव निर्याणकाले त्वद्रूपवीक्षणात् ॥ १२ योषाः शिथिलचारित्राः कामेन कालीकृताः । तत्र लज्जाविमुक्ताङ्गा विपरीतविचेष्टिताः ॥ १३ पीतासवसमाः कन्याः सधवा विधवाश्च ताः । लोकैवक्ष्येति विज्ञप्तो भूपालः स तथाकरोत् ॥ कुमारो बन्धनं ज्ञात्वा स्वस्य तद्वाक्यतो निशि । निर्ययौ नगरात्साश्वः सुविद्यासाधनच्छलात् ॥ स एकाकी श्मशानेऽथ शवं संभ्रूष्य भूषणैः । प्रज्वाल्य वह्निना तं चालक्ष्योऽगाद्रूपसागरः ।। क्रामन् क्रमेण स क्षोणीं क्रमाभ्यां विजयं पुरम् । प्राप्य मूले स संतस्थे श्रान्तोऽशोकतरोः परे । निमित्तसूचितं मत्वा वनेद् तं मगधाधिपम् । अबूबुधन्नृपस्तस्मै सोमलाख्यां सुतां ददौ ॥ १८ परोसना, बालकको स्तनपान कराना इत्यादिक गृहकार्य छोडकर वसुदेवको देखने के लिये जाती थीं। स्त्रियोंकी ऐसी उच्छृंखल परिस्थिति देखकर लोग - प्रजा के मुखिया पुरुष समुद्रविजय राजाके पास जाकर सर्व बातें कहने लगे। उनकी बातें सुनकर विद्वान् राजानेभी उनका रक्षण किया अर्थात् योग्य व्यवस्था की ।। ८-९ ॥ राजाने अपने घरके बगीचे में वसुदेवको यथेष्ट क्रीडा करने के लिये रख लिया और बाहर के बगीचे में जानेसे उसे रोका। घरके बगीचे में क्रीडा करनेवाले वसुदेवको निपुणमति नामक एक क्षुब्धचित्त नौकरने आपको बाहर जानेका निषेध है ऐसा कह दिया । तब नौकरको वसुदेवने पूछा कि मुझे बाहर जानेका निषेध किसने किया है ? नौकरने कहा कि, कुमार जब आप क्रीडा करनेके लिये निकलते हैं, उस समय आपके रूपावलोकनसे शिथिल चरित्रवाली स्त्रियाँ कामसे ग्रस्त होती हैं। वे लज्जाको छोडकर विपरीत चेष्टा करती हैं । कन्या, सधवा और विधवा स्त्रियाँ मानो मदिरापान किये जैसी हो जाती हैं। लोगोंनें स्त्रियों की ऐसी अवस्था देखकर श्रीसमुद्रविजय महाराजको निवेदन किया, जिससे उन्होंने आपको बाहर जानेका निषेध किया है ॥१०-१४॥ दासके भाषण से अपनेको बंधन में रखा जानकर रात में विद्यासाधनके निमित्त से कुमार एक घोडा साथ लेकर नगरसे बाहर चला गया । श्मशान में एक प्रेतको अलंकारोंसे भूषित करके तथा उसको अनिके द्वारा जलाकर वह सौन्दर्यसमुद्र कुमार अकेलाही अज्ञात रूप से वहांसे `चला गया ॥ १५-१६ ॥ वह वसुदेवकुमार पादचारी होकर अर्थात् क्रमसे पृथ्वीपर पांवोंसे चलता हुवा विजयपुरको प्राप्त होकर थक गया और उत्तम अशोकवृक्षके मूल में बैठ गया । निमित्तोंके द्वारा सूचित हुए उस कुमारको मालाकारने जान लिया और मगधाधिपति - मगधदेशके राजाको कुमारकी वार्ता उसने निवेदन की, तब राजाने अपनी सोमला नामक कन्या के साथ कुमारका विवाह किया Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002721
Book TitlePandava Puranam
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorJindas Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1954
Total Pages576
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, Story, & Biography
File Size15 MB
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