________________
नवमं पवे
१८७ कर्णेनाकर्णनोत्कीर्णा गीतिसंकीर्णमानसाः। विपद्यन्ते विपत्पूर्णा यथा चाजिनयोनयः ।।२०९
निशम्येति नृपोऽपृच्छत्स्वामिन राज्यं हि कौरवम् ।
भोक्तारो वा भविष्यन्ति धार्तराष्ट्राश्च पाण्डवाः ॥ २१० यदृष्टमिष्टमुत्कृष्टं विशिष्ट वस्तु वस्तुतः। विनश्यते विनाशो हि स्वभावो वस्तुनः स्फुटम् ।। अश्रौषं श्रवसा शप्रिं सतः सर्वार्थवेदिनः। पूर्व पुंसो विपद्यन्ते स्म ते कालेन मानवाः॥२१२ इदानीं ये च दृश्यन्ते दृश्या दृष्टिगता नराः। विपत्स्यन्तेऽत्र कालेन के स्थिराः सन्ति भूतले।। भाविनो भूतले लोकाः श्रूयन्ते शास्त्रकोविदः । भविष्यन्ति स्थिरा नो वा ब्रूहि ते च दयां कुरु ॥ कीदृशी पाण्डवानां हि भाविता स्थितिरुत्तमा । धार्तराष्ट्रा नरेन्द्राः किं भवितारो धरेश्वराः॥ नाथ सुव्रत योगीन्द्र योगयोगाङ्गपारग। अगम्यं गम्यते किंचिन्न ते वस्तु विशेषतः ॥ मगधः सुबुधो नीद्रम्भाभाभारभूषितः । सुपर्वपालितो रेजे नाकलोक इवापरः ॥ २१७
गायन सुननेमें आसक्त होते हैं और विपत्तिमें फंसकर मर जाते हैं, वैसे कर्णेन्द्रियसे शब्द-मधुर गायनादि सुनकर विपत्तिमें पडकर मरणको प्राप्त होते हैं ।। २०४-२०९॥ इस प्रकारका उपदेश सुनकर राजा धृतराष्ट्रने पूछा " हे स्वामिन् , कौरवोंका राज्य मेरे पुत्र दुर्योधनादिक करेंगे या पाण्डव उसके भोक्ता होंगे ? जो इष्ट, प्रिय, उत्कृष्ट और विशिष्ट वस्तु देखी जाती है वस्तुतः वह नष्ट होती है क्यों कि विनाश होना वस्तुका स्वभाव है यह बात स्पष्ट है। हे प्रभो, मैंने सर्व पदार्थोके ज्ञाता सत्पुरुषसे सुना है, कि पूर्वकालमें मनुष्य कुछ कालतक रहकर मर जाते थे। इस कालमें जो देखने लायक पुरुष दृष्टिगोचर हो रहे हैं वे भी इस भूतलपर कुछ कालके बाद मरेंगे। इस भूतलपर कौन स्थिर है ? अर्थात् कोई भी स्थिर नहीं दीखता है ॥२१०-२१३ ।। इस भूतलमें शास्त्रज्ञ विद्वानोंद्वारा जो सुना जाता है कि जो भावी महापुरुष हैं वे स्थिर रहेंगे या नहीं मुझपर दया करके आप कहिये । आगे-पाण्डवोंकी उत्तम स्थिति किस प्रकारकी होगी और मेरे पुत्र दुर्योधनादिक क्या पृथ्वी के स्वामी राजा होंगे ? ॥२१४-२१५॥ हे सुव्रत मुनीन्द्र, आपके ज्ञानमें न झलकनेवाली कोई वस्तु नहीं है अर्थात् प्रत्येक वस्तुकी विशेषता आपके ज्ञानमें प्रतिभासित होती है। आम योगीन्द्र हैं आपको योग और उसके अङ्गोंका-साधनोंका ज्ञान है ॥ २१६ ॥ हे प्रभो, मगधदेश मानो दुसरा स्वर्गही है। स्वर्ग सुबुध-देवोंसे साहित और रंभानामक अप्सराके सौंदर्यसे भूषित होता है और सुपर्वपालित-अर्थात् देवोंसे रक्षित है। वैसे मगधदेश सुबुधोंसे-सम्यग्ज्ञानी विद्वानोंसे सहित, रंभाभारभूषित केलेके पेडोंकी शोभासे सुंदर, सुपर्वपालित–उत्तम वंशोंके राजा
ओंसे पालित है। वहां अलकानगरीके समान राजगृह नगर है अलका-नगर राजराजगृहोन्नत-कुबेरके प्रासादोंसे ऊंचा होता है और धनदामरलोकान्य-कुबेर और उसके देव-यक्षोंसे परिपूर्ण होता है। यह राजगृहनगरभी राजराजगृहोनत-राजाओंका राजा-अधिपति जरासंध प्रतिनारायणके
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org