SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 209
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १५४ पाण्डवपुराणम् कजलेनापरा भाले तिलकं तिलकेन च । अञ्जनं नेत्रयोः काचित्कुर्वाणा पथि निर्गता ॥७९ प्रकटस्तनकुम्भाभा विपरीतात्तकञ्चुका । हसितागात्परैः काचित्का लज्जा कामिनां किल ॥८० काचिञ्जगाद सद्वृद्धा स्थूला च शकटावहा । सखि मां वीक्षितुं लात्वा त्वं याहि गमनोत्सुका ॥ भ्रूणभारपरिभ्रष्टा विसंभ्रमा भ्रमातिगा । बभ्राम भ्रान्तितः काचित् स्त्रीणां हि गतिरीदृशी ॥ अलब्धमार्गा गच्छन्ती परा मार्गविरोधिकाम् । प्रत्युवाच सुपन्थानं देहि देहीति भाषिणी ॥ तरुणी तरुणी काचित्पातयन्ती पुरः स्थिताम् । चचाल चलचिचापि चञ्चला जलवीचिवत् ॥८४ बभाण भामिनी काचित् दृष्ट्वा तं नृपनन्दनम् । ताभ्यां युतं ततं श्रीभिरिति हर्षसमाकुला || सखि केनात्र पुण्येनैताभ्यां योगं समाप च । पाण्डुः पाण्डुरछत्रेण लक्षितो लक्ष्यलक्षणः ॥ लक्ष्मीकान्तिकलापाभ्यामाभ्यां योगेन रञ्जितः । अयं चायेोविपाकेन समाप्नोति परां श्रियम् ॥ देखनेके लिये दौडी । योग्यही है कि कामिजनोंको विवेक कैसे रहेगा ! ॥ ७८ ॥ किसी स्त्रीने राजाको देखनेकी अभिलाषासे गडबडीमें अंजनका तिलक भालमें किया और कुंकुमसे नेत्र आंजे । और मार्गमें राजाको देखनेके लिये आकर वह खड़ी हो गई ॥७९॥ कोई स्त्री, जिसने गडबडीसे उलटी कंचुकी पहिनी थी, जब राजाको देखनेके लिये आई तब उसके प्रगट स्तनकलशोंकी कान्ति देखकर लोग हँसने लगे । योग्यही है, कि कामियोंको लज्जा कैसी ? अर्थात् वे तो निर्लज्ज होते हैं ॥ ८० ॥ गाडीमें बैठाकर ले जाया सकेगी इतनी स्थूल कोई वृद्ध स्त्री किसी स्त्रीको कहने लगी कि हे सखि, तुम जानेके लिये उत्सुक दीखती हो मुझे लेकर तुमभी जाओ ॥ ८१ ॥ गडबीसे जानेसे कोई स्त्री गर्भके भारसे मार्ग में गिर पडी प्रथम तो वह भ्रमरहित थी परंतु गिर पडने से उसको चक्कर आने लगा तब वह इधर उधर भ्रमण करने लगी। ठीकही तो है- स्त्रियोंकी ऐसीही गति होती है ॥ ८२ ॥ एक स्त्री जा रही थी परंतु दुसरीने उसका मार्ग रोक रखा था। तब मार्ग न मिलने से वह रोकनेवालीको कहने लगी सखि, मुझे मार्ग दे दो, देदो ऐसा वह बोलने लगी ॥ ८३ ॥ पानीकी लहरीकी समान चंचल तथा चंचल चित्तवाली कोई तरुण स्त्री अपने आगे खडी हुई दुसरी तरुण स्त्रीको गिराकर आगे चलने लगी ॥ ८४ ॥ कुन्ती और मद्रीसे युक्त तथा लक्ष्मीसंपन्न ऐसे व्यासपुत्र पाण्डुराजाको देखकर हर्षित हुई कोई स्त्री इस प्रकार बोलने लगी“ जिसके शारीरिक सामुद्रिक उत्तम लक्षण देखने लायक हैं तथा जो शुभ्र च्छत्रसे पहिचाना जाता है ऐसे पाण्डुकुमारके साथ किस पुण्यसे हे सखि, इन दोनोंने योग प्राप्त किया है ? कहो ॥ ८५८६ ॥ लक्ष्मी और कान्तिसमूह इनके योगसे तथा कुन्ती और मद्रीके योगसे रंजित हुआ यह पाण्डुकुमार पुण्योदयसे उत्तम शोभाको प्राप्त हो रहा है ॥ ८७ ॥ हे सखि, कुन्ती और मदीने पूर्व १ प पुण्याने, ग चायवि । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002721
Book TitlePandava Puranam
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorJindas Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1954
Total Pages576
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, Story, & Biography
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy