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पाण्डवपुराणम् नेदुर्नटगणा नित्यं नटीभिः पटवस्तदा । रम्भानृत्यं समुत्साहे कोपानिरसितुं यथा ॥४२॥ जग्रन्थुम्रन्थगीतानि गन्धर्वा गर्वगुण्ठिताः । विवाहसमये जेतुं हाहातुम्परनारदान् ॥४॥ मङ्गलानि सुकामिन्यो गायन्ति स्म शुभस्वनैः । विवाहगमने तस्य जेतुं देवागना. इव ॥४४ मात्रा मङ्गलकर्तव्यं सिद्धशेषां समाश्रितः । नीतोऽसौ निर्जगामाशु विवाहार्थ कृतोत्सवः ।। मार्गे कश्चिदुवाचेदं पश्य भूप प्रियामिव । शालिनी कमलाकीर्णा नदन्तीं च नदी पराम् ।। विलोकय धराधीशमचलं त्वामिवोभतम् । सर्वशं पार्थिवोपेतं सत्पादाश्रितसद्गुणम् ॥४७|| नाथ नृत्यन्ति मार्गेऽस्मिन्विवाहोत्सविनो मुदा । मयूरीभिर्मयूराश्च सुनटीभिर्यथा नटाः ॥
वस्त्रोंसे भूषित हुए कामी पुरुषोंके समान दीखते थे। और हाथकी अंगुलियां जिनसे नगारे बजवाये जाते थे प्रियस्त्रियोंके समान दिखती थीं। ऐसा मालूम पडता था मानो बजते हुए नगारे अपनी प्रियाओंको आलिंगन देनेको बुला रहे हैं। चतुर नटगण नटियोंके साथ नृत्य करने लगे। मानो विवाहकल्याणके समय रंभाका नत्य कोपसे दूर करनेके लिएही नाचते हो। गर्वसे भरे हुए गंधर्वलोक विवाहसमयमें हाहा, तुंबरु, और नारदको जीतनेके लिये स्तुतियोंके गीत रचकर गाने लगे। विवाहके लिये प्रयाणकी वेलामें सुवासिनी स्त्रियां शुभ स्वरोंसे मानो देवांगनाओंको जीतनेके लिये मंगल-गायन गा रही थीं। उस समय सुभद्रा माताने मंगल कर्तव्य समझकर आरती उतारकर पाण्डुराजाको सिद्धपरमेष्टियोंकी चरणशेषा धारण करवाई। तदनंतर पाण्डुराजा शीघ्र बडे उत्सवसे विवाहके लिये निकला ॥४१-४५॥ मार्गमें पण्डुराजाका कोई मित्र उसे इस प्रकार कहने लगाहे मित्र देखो कमलोंसे परिपूर्ण, और कलकल शब्द करती हुई यह नदी कमलमालासे शोभनेवाली
और मधुर शब्द करनेवाली प्रियाके समान दीखती है। किसी मित्रने कहा कि हे नराधीश, आपके समान यह पर्वत है। आप उन्नत ऐश्वर्यशाली हैं और पर्वत उन्नत-ऊंचा है। आप सद्वंश-उच्च कुलमें उत्पन्न हुए हैं और पर्वत सदश-उत्तम बाँसके वनसे भरा हुआ है। आप पार्थिवोपेतराजाओंसे युक्त हैं और पर्वत पार्थिवोपेत-पाषाणोंसे युक्त है। आप सत्पादाश्रितसद्गण हैं अर्थात् आपके उत्तम चरणोंका आश्रय सज्जन समूहने लिया है और पर्वतके भी नीचेके भागका आश्रय शत्रुओंने लिया है। अर्थात् हे राजन् आपसे भयभीत होकर आपका शत्रुगण पर्वतके गुहादिक नीचले भागका आश्रय लेकर रहा है। इस प्रकार पर्वतने आपका अनुकरण किया है। हे नाथ, आपके विवाहका उत्सव मनानेवाले नट जैसे नटियोंके साथ नृत्य करते हैं वैसे इस मार्गमें मयूरियोंके साथ मयूर नृत्य कर रहे हैं। हे नाथ, मार्गके ये वृक्ष आपके समान दीखते हैं। आप महाच्छायः- अतिशय कान्तिसम्पन्न हैं। और वृक्ष महाच्छाया विशाल छायाको धारण करनेवाले दीखते हैं। आप सफल कार्यकी सिद्धिसे युक्त हैं, पल्लवादिनः आप पल्लवोंसे यानी मित्रोंसे युक्त हैं, और वृक्ष पल्लवादिनः कोमल पत्तोंसे निबिड हैं। आप समुन्नत-ऊंचे-श्रेष्ठ हैं और वृक्ष समुन्नत
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