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सप्तमं पर्व
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वाचं यच्छ कुरु स्वच्छां सच्छीलच्छलितात्मिकाम्। अनिच्छन्तीं हि मां छिद्रं वत्से गच्छ दयां मयि ऋते मृतेर्न चेयर्ति ममार्तिः कृन्तकार्तिका । आत्मनोऽतो मृतिं तूर्णं कीर्तयिष्यामि सत्वरम् || मृत्युन्मुखं मुखं वीक्ष्य धात्री तस्या घृतात्मिका । जगाद जगदानन्दं ददती सदया द्रुतम् ।। भयं मा भज भोगाढ्ये स्वास्थ्यं गच्छ मनोहरे । यथा ते स्वास्थ्यसंपत्तिः करवाणि तथाप्यहम् ।। समाश्वास्येति तां धात्री विधात्री धृतिसाधनम् । धाम्नि धामसमुद्दीप्तां धारयन्ती स्थितिं व्यधात् ।। दोषस्याच्छादनं धात्री तस्या सर्वत्र बुद्धितः । कुर्वन्ती समयं किंचिभिनाय नयकोविदा || अथ तद्योगतस्तस्या भ्रूणभावो बभूव च । ववृधे क्रमतो भ्रूणो विविधभ्रान्तिभासतः।। २३८ कठिनं जठरं तस्यास्त्रिवलीभङ्गवर्जितम् । गर्भस्य प्रथमं चिह्नं कुर्वन्प्रकटमुद्बभौ ।। २३९ लपनं पाण्डिमोपेतं सन्निष्ठीवननिष्ठुरम् । तुच्छजल्पनसंकल्पमभूत्तस्याः शुभेक्षणम् ॥ २४० स्तनकुम्भौ कञ्चुकाख्य समाच्छादनच्छादितौ । तत्प्रभावाद्धिरण्याभौ तस्या रेजतुरुन्नतौ ।। २४१ सपल्लवा यथा वल्ली संचिता सलिलोत्करैः । तथा सा गर्भभारेण स्तनभारोद्धरा बभौ ।। २४२ भ्रूणभारश्रमश्रान्तां कुन्तीं वीक्ष्य कदाचन । जनकौ खेदितस्वान्तौ तां धात्रीं प्रति चाहतुः।। निष्ठुरे दुष्टतानिष्ठे कनिष्ठेऽनिष्टसंगते । अनिष्टमीदृशं कुन्त्याः कारितं केन च त्वया ||२४४
कर जगतको आनंद देनेवाली, धीर धाय इस प्रकार कहने लगी । ' हे भोगसम्पन्न कुन्ती, तू चिन्ता मत कर, हे मनोहरे, तुझे जैसा सुखलाभ होगा वैसा प्रयत्न मैं करूंगी ' । इस प्रकार कुन्तीको धायने आश्वासन दिया । धैर्यका उपाय करनेवाली उस धायने महल में तेजसे युक्त कुन्तीका आनन्दसे रक्षण किया और मर्यादापालन किया । सभी बातोंमें अपनी बुद्धिसे कुन्तीके दोषका आच्छादन करते हुए नीतिनिपुण वायने कुछ काल बिताया ।। २२५ - २३७ ॥ पाण्डुराजाके संयोग से कुन्ती गर्भवती हुई । उसका गर्भ क्रमसे बढने लगा । और उससे कुन्तीको अनेक प्रकारकी भ्रान्ति उत्पन्न होने लगी अर्थात् मस्तक दुखना, चक्कर आना, वमन होना आदि बाधायें उत्पन्न होने लगी । उसका पेट कठिन होने लगा, उदरपरकी त्रिवकीरचना नष्ट हो गई, ये गर्भके प्रथम चिह्न प्रकट शोभने लगे । कुन्तीका मुख सफेत दीखने लगा | उसको कय होने लगी, किसके साथ थोडासा बोलनाही उसे पसंद होने लगा और उसकी आंखें सुंदर तेजस्वी दीखने लगी । कंचुकीसे आच्छादित स्तन गर्भके प्रभाव से सुवर्णकान्तिसे सुंदर और उन्नत पुष्ट दीखने लगे । जैसे जलसिंचित बेल पत्रपुष्पादिकोंसे समृद्ध होकर सुंदर दीखती है, वैसे यह कुन्ती गर्भके भार से स्तनभारको धारण करती हुई शोभा पाने लगी || २३८ - २४२ गर्भभारके श्रम से पीडित हुई कुन्तीको देखकर किसी समय मातापिताका मन खिन्न हुआ । वे धायको इस प्रकार बोलने लगे ॥ २४३ ॥ " हे निष्ठुर, दुष्टतामें तत्पर, हे नीच, हे अनिष्ट कार्य करनेवाली धाय, यह कुन्तीका प्रत्यक्ष दीखनेवाला अनिष्ट कार्य तुमने किसके द्वारा कराया है || २४४ || उत्तम कुलमें उत्पन्न
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