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कुरुवंशादि चार वंशोंकी स्थापना
कथाके प्रारम्भमें यहां भोग भूमिकालमें होनेवाले चौदह कुलकरोंके उत्पत्तिक्रमको बतलाते हुए भगवान् ऋषभ देवके संक्षिप्त जीवनवृत्तका वर्णन किया गया है। भगवान् ऋषभ देवने सद्बुद्धिसे क्षत्रिय, वैश्य और शूद इन तीन वर्णोंकी स्थापना की । इसके साथही उन्होंने राजस्थितिकी सिद्धिके लिये इक्ष्वाकु, कौरव, हरि और नाथ नामक ये चार क्षत्रिय गोत्र भी स्थापित किये । इनमें से प्रस्तुत कौरववंशमें उन्हीं वृषभेश्वरने सोमप्रभ और श्रेयांस इन दो राजाओंको स्थापित किया ।
कुरुवंश परम्परा
कुरुवंश परम्परामें सोमप्रभ, जयकुमार [ भरत चक्रवर्तीका सेनापति ], अनन्तवीर्य, कुरु, कुरुचन्द्र, शुभंकर व धृतिंकर आदि बहुसंख्याक राजाओं के अतीत होनेपर धृति देव हुआ । तत्पश्चात् धृतिमित्र आदि अन्य बहुतसे राजा हुए। तदनन्तर धृतिक्षेम, अक्षयी, सुव्रत, व्रातमन्दर, श्रीचन्द्र, कुलचन्द्र, सुप्रतिष्ठ आदि; भ्रमघोष, हरिघोष, हरिध्वज, रविघोष, महावीर्य, पृथ्वीनाथ, पृथु और गजवाहन आदि सैकड़ों राजा हुए | पश्चात् विजय, सनत्कुमार, सुकुमार, वरकुमार, विश्व, वैश्वानर, विश्वध्वज, बृहत्तु व सुकेतु राजा हुए। तदनन्तर विश्वसेन राजाके पुत्र शान्तिनाथ तीर्थकर हुए । इसी परम्परा में भगवान् कुन्थु और अरनाथ तीर्थंकर उत्पन्न हुए थे । इनके पश्चात् राजा मेघरथ और उसके पुत्र विष्णु [ अकम्पनाचार्य के संघकी रक्षा करनेवाले ] और पद्मरथ हुए थे । फिर इसी परम्परामें पद्मनाभ, महापद्म, सुपद्म, कीर्ति, सुकीर्ति, वसुकीर्ति व वासुकि आदि बहुत से राजाओंके व्यतीत होनेपर कौरवाग्रणी शान्तनु राजा उत्पन्न हुआ । उसकी पत्नीका नाम सवकी था । इन दोनोंके पराशर नामक पुत्र उत्पन्न हुआँ । पराशरका विवाह रत्नपुरनिवासी जहु नामक विद्याघरकी पुत्री गंगा [ जाह्नवी ] के साथ हुआ था । इनके पुत्रका नाम गांगेय [ भीष्म पितामह ] था । पराशर राजाने योग्य समझकर उसे युवराज पदपर प्रतिष्ठित किया था ।
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१ ब्राह्मण वर्णकी स्थापना भरतचक्रवर्तीने को थी ।
२ हेमचन्द्रसूरिविरचित त्रिषष्ठिशलाका पुरुषचरित्र (८, ६, २६४-६५ ) और देवप्रभसूरिविरचित पाण्डवचरित्र ( १, ९-११ ) में कुरुको वृषभ स्वामीके सौ पुत्रोंमेंसे एक पुत्र बतलाया गया है । इसीके नामसे कुरुक्षेत्र प्रसिद्ध हुआ । कुरुपुत्र हस्तीके नामके अनुसार हस्तिनापुरकी भी प्रसिद्धि हुई । हस्ती राजाकी परम्परा अनन्तवीर्य राजा हुआ ( दे प्र. पां. च. १-१८ ) ।
विष्णुपुराण में बृहत्क्षत्रका पुत्र सुहोत्र और सुहोत्रका पुत्र हस्ती बतलाया गया है । इसने हस्तिनापुर वाया था ( ४, १९, २७-२८ ) ।
३ दे. प्र. पां. च. १-१६. ४ दे. प्र. पां. च. १-१७.
५ अतिक्रान्तेष्वसंख्येषु ततो राजस्वजायत । प्रशान्तः शान्तनुर्नाम तेजोधाम प्रजापतिः ॥
दे. प्र. पां. च. १-२१ विष्णुपुराण में शान्तनुकी पूर्वपरम्परा इस प्रकार बतलाई गई है - परीक्षित्के १ जनमेजय २ श्रुतसेन
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