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चतुर्थ पर्व
तलान्तशिखरोद्याने विहृत्य व्याहृतः क्षणात् । खे गच्छन्व्योमयानं हि गच्छद्वीक्ष्य परं महत्।। शुश्रावेति श्रुति व मे भूपः श्रीविजयो जयी । रथनूपुरनाथ त्वं मां पाहि परमेश्वर ॥ १५५ गत्वाहं तत्र चाख्यं कस्त्वम का हरस्यहो । इत्युक्ते सोज्गदीक्रोधाद्विद्येशोऽशनिघोषकः।। सोऽहं चमरचश्वेशो बलादेनां हरामि भोः। भवतोरस्ति शक्तिश्चेदिमां मोचयतं ध्रुवम् ॥१५७ श्रुत्वेति मत्प्रभोरेषानुजानेनाद्य नीयते । कथं गच्छामि हन्म्येनमिति योद्धं समुद्यतः॥१५८ मां संवीक्ष्य सुताराख्यधुद्धं त्वं मा कृथा वृथा। याहि ज्योतिर्वने भूपं स्थितं पोदननायकम्।। मदवस्था समाख्याहि प्रेषितोऽहं तयेति च । इयं त्वच्छत्रुसंदिष्टदेवतेत्यादराहृतः ॥१६० ततः श्रुत्वेति भूमीशोऽगदीखेचर सत्वरम् । इदं वृत्तं समाख्याहि गत्वा पोदनपत्तने॥१६१ जनन्यनुजबन्धूनामित्युक्तेऽसौ खगेश्वरः। प्राहिणोत्पादनं सद्यः पुत्रं दीपशिखं तदा ॥१६२ पोदनेऽपि बहूत्पातजृम्भणं समजायत । तद्वीक्ष्यामोघजिह्वाख्यो जयगुप्तश्च प्रश्नितः॥१६३
नाम सर्वकल्याणी है; तथा पुत्रका नाम दीपशिख है । वह सुखी है। रथनूपुरके स्वामी अमिततेज मेरे स्वामी है । उनके साथ मैं शिखरतल नामक उद्यानमें विहार करनेके लिये गया था। वहां क्रीडाकर जब मैं लौटा तब आकाशमेंसे जाते हुए मुझे बहुत बडा विमान जाता हुआ दीख पडा । उसमें ' हे विजयी श्रीविजय राजा, हे रथनूपुरनाथ 'हे परमेश्वर, आप मेरा रक्षण कीजिए। ऐसी ध्वनि मेरे कानमें पडी ' मैंने वहां जाकर पूछा कि तू कौन है, यह स्त्री कौन है, इसे तू हरण कर कहां ले जा रहा है ? तब वह अशनिघोष विद्याधर क्रोधसे बोलने लगा । ' मैं चमरचंचा नगरीका स्वामी हूँ और इसे मैं जबरदस्ती ले जारहा हूं । कुछ सामर्थ्य हो तो आप दोनों इसको छुडाकर ले जाओ' ॥ १५२-१५७ ॥ ' यह अशनिघोषका भाषण सुनकर यह मेरे स्वामीकी छोटी बहिन है, इसे आज यह ले जा रहा है । अतः मेरा यहांसे जाना योग्य नहीं है । मैं इस दुष्ट को मारूंगा, ऐसा विचार कर उसके साथ लडनेकेलिये उद्युक्त हुआ।" मुझको देखकर सुताराने कहा कि इसके साथ तू व्यर्थ युद्धके फंदेमें न पडकर ज्योतिर्वनमें मेरे पति पोदन-नगराधीश श्रीविजय हैं उनके सन्निध जाकर मेरा हाल उनको कहो। ऐसा बोलकर उसने मुझे आपके पास भेजा है । “हे राजन् यह वेताली आपके शत्रुके द्वारा आज्ञापित देवता थी; मैं आपके आदरसे यहां आया हूं।" संभिन्नसे इस प्रकारका वृत्त सुनकर राजा श्रीविजयने कहा, " हे विद्याधर, शीघ्रही पोदनपुर जाकर मेरी माता, छोटा भाई और अन्य बंधुजनोंको यह वृत्त कहो ।” विद्याधरने तत्काल दीपशिखनामक पुत्र को भेज दिया ॥१५८-१६२॥ उस समय पोदनपुरमें भी अनेक उत्पात प्रकट होगये । उनको देखकर स्वयंप्रभादिकोंने अमोघजिह्व और
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