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चतुर्थ पर्व
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आदाञ्जेनेश्वरीं दीक्षां क्रमान्मोक्षं समासदत् । तच्छ्रुत्वा खेचरेन्द्रोऽपि राज्यं न्यस्यार्ककीर्तये ।। जगन्नन्दनसामीप्ये दीक्षामाप जगन्नुताम् । सोऽगमत्परमं ध्यानं ततश्च परमं पदम् ||८९ ज्योतिःप्रभा कदाचिच्च त्रिपृष्ठस्य सुता परा । स्वयंवरविधानेन वत्रे चामिततेजसम् ॥ ९० खगपुत्री सुतारा सुस्वयंवरविधानतः । स्वयं रागवती वत्रे वरं श्रीविजयं वरम् ।। ९१ भुक्त्वा चिरं महाराज्यं विष्णुश्वायुःक्षये गतः । सप्तमं भूतलं राज्यं बलः श्रीविजये न्यधात्॥ ९२ न्यस्य विजयभद्राय यौवराज्यं हलायुधः । चक्रिशोकाकुलौ गत्वा स्वर्णकुम्भसमीपताम् ॥ ९३ सहस्रैः सप्तभिर्भूतैर्यया संयममुत्तमम् । निर्मूल्य घातिकर्माणि केवल्यासीत्परोदयः ॥ ९४ अर्ककीर्तिस्तदाकर्ण्य संस्थायामिततेजसम् । राज्ये विपुलमत्याख्य चारणादग्रहीतृपः ॥९५ नष्टकर्मागतो मुक्ति तयोरविकले परे । शर्मणामिततेजः श्रीविजयाख्यनृपालयोः ॥ ९६ गच्छति प्रचुरे काले कश्चित्पोदनपत्तने । साशीर्वादः समागत्य प्रोवाच नृपतिं प्रति ।। ९७ सावधान धराधीश भूत्वा मद्वचनं शृणु । सप्तमेऽह्नि तरां मूर्ध्नि पोदनाधिपतेरितः ॥ ९८
की । तदनंतर उसे परमध्यान- शुक्लध्यान की प्राप्ति हुई और कर्मोंके क्षयसे परमपद - मोक्षपद लाभ हुआ । ८६-८९ ॥
[ ज्योतिः प्रभा और सुतारा के स्वयंवर ] त्रिपुष्टनारायणकी पुत्री ज्योतिः प्रभाने स्वयंवरविधीसे अमिततेजको वरा । और अर्ककीर्तिकी पुत्री सुताराने प्रेम वश होकर स्वयंवर विधान से श्रेष्ठ श्रीविजयको वरा ।। ९०-९१ ॥
[ त्रिपृष्ठ नरकगमन तथा श्रीविजयको मुक्तिलाभ ] दीर्घकालतक महाराज्यका उपभोग लेकर विष्णु त्रिपृष्ट आयु के क्षयसे मरकर सातवे नरक गया । तत्र चक्रवर्ती के शोक से पीडित होकर विजयबलभद्रने श्रीविजयको राज्यपर बैठाया और विजयभद्रको युवराजपद दिया । अनंतर उन्होंने स्वर्णकुंभ मुनिके पास जाकर सात हजार राजाओंके साथ उत्तम संयम को धारण किया । तदनंतर घातिकर्मोंको नष्ट कर वे परमोदयके धारक केवलज्ञानी हुए ।। ९२ - ९४ ॥ अर्ककीर्तिने यह सब वृत्त सुनकर अमिततेजको राज्यपर स्थापन किया और विपुलमति नामक चारणमुनिके समीप तप - दीक्षा धारण की। कर्मोंका नाश कर वह मुक्त होगया ॥ ९५ ॥
[ श्रीविजयके मस्तकपर वज्रपात होगा ऐसा निमित्तज्ञानीका कथन ] अमिततेज और श्रीविजय राजाओंका दीर्घकाल सुखसे बीत रहा था । किसी समय कोई विद्वान् पोदनपुरमें आकर आशीर्वाद देकर श्रीविजयको इसप्रकार कहने लगा । हे राजन्, सावधान होकर मेरा भाषण सुन । आजसे सातवे दिन पोदनाधिपतिके मस्तकपर महावज्र पडेगा । अतः उस विषय में उपायका विचार करो । यह सुनकर युवराजने तीव्र क्रोधसे पूछा, कि हे विद्वन्, उससमय तेरे मस्तकपर क्या पडेगा, बोल । निमित्तने युवराजका वचन सुनकर कहा, कि हे भूपेश, मेरे
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