________________
पाण्डव पुराणम्
आरेभाले क्षमौ तौ च विद्यायुद्धं बलोद्धतौ । चिरं युद्धवाश्वग्रीवस्तु व्यर्थविद्याबलः क्रुधा ॥७८ अम्यरि क्षिप्तवांश्चक्रं तदेवादाय केशवः । तेनाश्वग्रीवसद्धीवा मच्छिनद्बलतो बली । ७९ त्रिपृष्ठविजयौ जातौ भरतार्धपती परौ । खेचरैव्यन्तरैर्भूपैर्मागधैः कृतपूजनौ ॥ ८० रथनूपुरनाथाय द्वयोः श्रेण्योरवातरत् । प्रभुत्वं किं न जायेत महदाश्रयतोऽच्युतः || ८१ खङ्गः शङ्खो धनुथक्रं दण्डः शक्तिर्गदाभवन् । सप्त रत्नानि सद्विष्णो रक्षितानि मरुद्गणैः॥ ८२ रत्नमाला गदा दीप्यद्रामस्य मुशलं हलम् । चत्वारीमानि रत्नानि जज्ञिरे भाविनिर्वृतेः ॥ ८३ सहस्रद्वयष्टदेव्यस्तु विष्णोः स्वयंप्रभादयः । रामस्याष्टसहस्राणिशीलरूपगुणान्विताः ||८४ प्रजापतिः सुतां ज्योतिर्मालां दत्त्वार्ककीर्तये । प्राप प्रीतिं परां युक्त्या विवाहेन महोत्सवैः।। ८५ तयोरमिततेजास्तुक् सुतारा च सुताभवत् । विष्णोः श्रीविजयः पुत्रः परो विजयभद्रकः ।। ८६ सुता ज्योतिःप्रभा नाम्नी स्वयंप्रभासमुद्भवा । प्रजापतिर्भवाद्भीतो गत्वाथ पिहितास्रवम् ||८७
चक्ररत्न लेकर उसके द्वारा बली त्रिपृष्ठने बलपूर्वक अवग्रीवा कंठ छेद दिया । त्रपृष्ठ और विजय दोनों कुमार उत्तम त्रिखण्डभरतके स्वामी हुए । उनकी विद्याधर, भूमिगोचरी राजे और मागधादिव्यंतर--देवोंने पूजा की । रथनूपुरके स्वामी श्रीज्वलनजी विद्याधर राजाको पृष्ठ दक्षिणश्रेणी और उत्तर श्रेणी इन दोनो श्रेणियोंके समस्त देशोंका राज्य दिया । ' योग्यही है कि, महापुरुषोंके आश्रयसे क्या नहीं होता ? अर्थात् बडोंके आश्रयसे तुच्छ पुरुषभी बडे - मान्य हो जाते हैं । ॥ ७४-८१ ॥
[ त्रिपृष्टका वैभव ] खड्ड - तरवार, शंख, धनुष्य, चक्र, दण्ड, शक्ति और गदा इन सात रत्नोंकी प्राप्ति विष्णु - त्रिपृष्ठ कुमारको हुई थी । इन रत्नोंका रक्षण देवसमूह करता था ॥८२॥ रत्नमाला, गदा, तेजस्वी मुशल और हल ऐसे चार रत्न राम को विजयबलभद्रको जो कि मुक्त होनेवाले थे प्राप्त हुए थे || ८३ ॥ त्रिपृष्टनारायणकी स्वयंप्रभादिक सोलह हजार रानियां थी । और विजय बलभद्रकी आठ हजार रानियां थी । वे सभी शील, रूप आदि गुणोंसे युक्त थी ||८४ ॥ प्रजापति महाराज अपनी लडकी ज्योतिर्माला ज्वलनजटी राजाके पुत्र अर्ककीर्तिको विवाहसे महोत्सवपूर्वक अर्पण कर अतिशय आनंदित हुआ । अर्ककीर्ति और ज्योतिर्मालाको अमिततेज नामक पुत्र और सुतारा नामकी कन्या हुई । विष्णु - त्रिपृष्ठको स्वयंप्रभारानीसे श्रीविजय, और विजयभद्र दो पुत्र और ज्योतिः प्रभा नामकी कन्या हुई ॥ ८५ ॥
I
[ प्रजापति राजा और ज्वलनजदीको मोक्ष लाभ ] प्रजापति राजा संसारसे भय धारण कर पिहितास्रव मुनिराजके पास गये । उनके चरणमूलमें उन्होंने जैन दीक्षा धारण की तथा क्रमसे मोक्षलाभ किया। प्रजापति राजाकी दीक्षाप्राप्ति तथा मुक्तिप्राप्ति सुनकर ज्वलनजी राजाने भी अर्ककीर्तिको राज्य दिया और जगन्नन्दन मुनिराजके समीप जगद्वन्द्य जिनदीक्षा धारण
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org