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भी देखते-देखते विलीन हो जाता है तथा यह कुटुम्ब साक्षात् पाश के समान है ।। १०१।। प्रातःकाल में जिस प्रकार दर्भ की अनी पर लगी हुई जल की बूंद अत्यन्त चन्चल व क्षण में विनाशवान है, उसी प्रकार मनुष्यों का जीवन भी अत्यन्त चन्चल एवं विनाशवान तथा इन्द्रियों के विषय, बन्धु-बांधव आदि स्वजन एवं संसार के समस्त काम भोग क्षणभंगुर हैं ।।१०२।। इसलिए जो पुरुष विलक्षण हैं, वास्तविक रूप से संसार के स्वरूप के जानकार है, उन्हें बाल्यावास्था में ही सम्यक्चारित्र को ग्रहण कर लेना चाहिए एवं प्रतिक्षण अपनी मृत्यु की आशंका कर उन्हें बहुत शीघ्र मोक्ष की प्राप्ति के लिए प्रयत्न करना चाहिए ।।१०३।। जब से जीव उत्पन्न होता है, तभी से यह यमराज दिन, पक्ष, मास आदि के हिसाब से जीव को मृत्यु के मुख में प्रविष्ट कराने का प्रयत्न करता है। इसलिए धर्म के विषय में इस प्रकार समय का विलम्ब नहीं करना चाहिए कि हम आज धर्म-सेवन न करेंगे, तो कल कर लेंगे या यह समय विषय-भोग भोगने का है, वृद्धावस्था में जाकर धर्म कर लेंगे; क्योंकि मृत्यु का कोई ठीक समय नहीं है ।। १०४।।
संसार के अन्दर इन्द्रियाँ, आयु, गृह, राज्य, भोगोपभोग, परिवार एवं लक्ष्मी आदि जितने भी पदार्थ हैं; वे || सब--जिस प्रकार विद्युत चमक कर शीघ्र नष्ट हो जानेवाली है--उसी प्रकार नष्ट हो जानेवाले हैं। यदि संसार में शरणदाता है, तो वह एक समीचीन-धर्म ही है। धर्म के सिवाय मृत्यु के मुख से बचानेवाला कोई भी शरण नहीं || पु है। यह संसार अत्यन्त भयानक है; अतिशय चन्चल है। अनेक प्रकार के दुःखों का समुद्र है एवं अनेक प्रकार के || रा अकल्याणकों का करनेवाला है। ऐसे महा भयानक संसार में यह बिचारा दीन जीव अकेला ही अपने-आप कर्मों के | फल से महा दुःखित होकर भ्रमण करता फिरता है । इसे रन्चमात्र भी शान्ति नहीं मिलती है ।।१०।। आत्मा पदार्थज्ञानी है । आत्मा से भिन्न शरीर कुटुम्ब एवं समस्त कर्म स्वभाव से ही महा अज्ञानी हैं । यह शरीर जिसका कि लोगों को घमण्ड है, वह यमराज के रहने का स्थान है। अनेक प्रकार के दुःखों का समुद्र है एवं रक्त-मांस आदि जितने भी अपवित्र पदार्थ हैं, उन सबका खजाना है तथा कर्मों का आसव, मिथ्यात्व, अविरति आदि कारणों से ||६७ जायमान है, अनन्तकाल पर्यंत संसार में घुमानेवाला है एवं नाना प्रकार के दुःखों का देनेवाला है तथा संवर समस्त पाप कर्मों का रोकनेवाला है, दुःख का हरण करनेवाला है एवं मोक्ष को प्रदान करता है ।। १०६।। सम्वर के बाद निर्जरा समस्त अशुभ कर्मों की क्षय करनेवाली है । उत्कृष्ट तप से जायमान है एवं मोक्ष को प्रदान करनेवाली है तथा
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