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दिया ।।२०-२१।। जल से प्रक्षालित शरीर के धारक एवं स्वभाव से ही सन्दर भगवान के शरीर पर जो जल की बँदें || विद्यमान थीं, इन्द्राणी ने सूक्ष्म एवं निर्मल वस्त्रों से उन्हें पोंछ कर साफ कर दिया ।।२२।। जिसकी उपमा किसी भी शरीर से नहीं दी जा सकती. ऐसा भगवान का शरीर यद्यपि स्वभाव से ही महा सगंधित था, इसलि सुगंधित द्रव्यों से उसका लेप करना निरर्थक था; तथापि अपनी भक्ति प्रगट करने के लिए इन्द्राणी ने अत्यंत सुगंधित द्रव्यों का उनके अंग पर लेप किया था ।।२३।। तीन जगत् के स्वामी तीर्थंकर का ललाट समस्त अंगों में तिलकस्वरूप था अथवा संसार में जितने भी ललाटधारी पुरुष हैं, उन सबों के ललाटों में तिलकभूत था; इसलिए उस ललाट पर इन्द्राणी ने तिलक लगाया तथा मस्तक पर मन्दार जाति के कल्पवृक्ष की माला से शोभायमान मुकुट पहिनाया ।।२४।। नेत्रों में जो अन्जन लगाया जाता है, वह नेत्रोंकी दीप्ति बढ़ाने के लिए लगाया जाता है। भगवान श्रीमल्लिनाथ समस्त लोक के ज्ञाता थे एवं ज्ञानरूपी नेत्र के स्वामी थे; इसलिए उनके नेत्रों में अन्जन लगाने की कोई आवश्यकता नहीं थी, तथापि उनके उत्तम नेत्रों में इन्द्राणी ने जो अन्जन लगाया था, वह केवल शिष्टाचार प्रदर्शन करने के लिए ही था; अर्थात् उसने अपना कर्तव्य कर्म पूरा किया था ।।२५।। बेधे न जाने पर भी स्वभाव से ही उत्तम छिद्रों से शोभित भगवान श्री मल्लिनाथ के दोनों कानों को इन्द्राणी ने मनोहर कुण्डलों से भूषित किया एवं मणिमय महामनोहर हार पहिना कर उनका कण्ठ शोभायमान किया था ।।२६।। उनकी दोनों भुजाओं में महामनोज्ञ |रा अनन्त मुद्रिका एवं कड़े पहिनाए थे कटिभाग पर महामनोहर मणिमयी करधनी बाँधी थी, दोनों पैरों में मणिमयी घुघुरू पहिनाए थे, जो कि अनुपम थे एवं 'घुनुनु-घुनुनु' शब्द करनेवाले थे, सो ऐसे जान पड़ते थे मानो साक्षात् सरस्वती देवी उन दोनों घुघुरुओं की सेवा कर रही हैं ।।२७-२८|| उत्तमोत्तम वस्त्र, भूषण एवं माला आदि से सजाए गए एवं अपने शरीर की मनोहर कान्ति से दैदीप्यमान वे भगवान श्री मल्लिनाथ ऐसे जान पड़ते थे मानो साक्षात परम ब्रह्मस्वरूप हैं अथवा उदय को प्राप्त साक्षात् ज्ञान की मूर्ति हैं वा अत्यन्त सुन्दर होने के कारण साक्षात् रत्नाकर--समुद्रस्वरूप हैं वा साक्षात् धर्म की मूर्ति हैं अथवा लक्ष्मी के पुन्ज-स्वरूप हैं, वा तेजों के अद्भुत खजाने हैं अथवा यशों की राशि हैं वा संसार के अन्दर जितने भी पुण्य परमाणु हैं, उनके सर्वोत्कृष्ट स्थान हैं अथवा संसार में जितने गुण माने जाते हैं एवं कहे जाते हैं, उन सबके आधार ये ही हैं । इसरूप से भगवान श्री मल्लिनाथ की
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