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________________ ___“हे देवी ! मंगलमयी माता ! तुम्हारे गर्भ में भगवान श्री मल्लिनाथ ने जन्म धारण किया है, इसलिए उस विशिष्ट | गर्भ के द्वारा 'आदिहर्यादीनां मनः अहारि' अर्थात् प्रथम स्वर्ग के इन्द्र आदि को लेकर समस्त देवों का मन हरा गया है--वे भी तुम्हारे सेवक हो गए हैं, अतः तुम मनुष्य लोक के उत्तमोत्तम पदार्थों के भोग के साथ स्वर्गलोक के समस्त मांगलिक--उत्तमोत्तम पदार्थों का भी भोग करो। यहाँ पर “अहारि" यह क्रिया पद गुप्त है । कोई-कोई देवांगना जिनके उच्चारण करने में ओंठ आपस में न लगें, ऐसे अक्षरों का श्लोक बना कर इस प्रकार माता की प्रशंसा करने | 'लगी-'हे सखी ! अनन्त गुणों का धारणकरनेवाला तीनों लोक का नाथ, सकल संसार का गुरु एवं नित्य-स्त्री अर्थात् || शिवरूपी स्त्री के गुणों में सदा अनुराग रखनेवाला तेरा पुत्र चिरकाल तक जयवन्त हो।" इस श्लोक में ओष्ठ स्थानीय अर्थात् जिसका उच्चारण ओठों की सहायता से हो, ऐसा कोई भी वर्ण नहीं है ।।३८-३६।। बहुत-सी देवांगनाएँ माता के समीप बैठ कर अनेक प्रकार के उत्तमोत्तम प्रश्न करती थीं तथा माता प्रजावती बुद्धिपूर्वक उनका स्पष्ट उत्तर देती थीं। उनमें कुछ प्रश्नोत्तर इस प्रकार के थे। प्रश्न--माता ! इस संसार में तुम्हारे समान परम सौभाग्यशाली अन्य कौन स्त्री हो सकती है ? उत्तर- जो स्त्री धर्म के स्वामी तीर्थंकरों को उत्पन्न करनेवाली हो । प्रश्न--संसार के अन्दर अज्ञान को दूर करनेवाला उत्तम गुरु कौन हो सकता है ? उत्तर--जो गुरु वास्तविक रूप से तत्वों का जानकार हो, बाह्य-आभ्यन्तर दोनों प्रकार के परिग्रहों से रहित हो एवं अपने को तथा संसार-समुद्र में डूबते हुए प्राणियों के पापों को तारनेवाला हो। प्रश्न--संसार में कुगुरु (मिथ्या गुरु) कौन है ? उत्तर-- जो स्पर्शन, रसना आदि पाँचों इन्द्रियों के विषय में आसक्त हो, बाह्य-आभ्यन्तर दोनों प्रकार के परिग्रह में ममत्व रखनेवाला हो एवं क्रोधी-मानी आदि होने से अत्यन्त प्रमादी हो । प्रश्न--संसार में समस्त पुरुषों में उत्तम पुरुष कौन है ? उत्तर--जो मोह से रहित हों एवं मोक्ष के लिए सदा प्रयत्न करनेवाले हों ।।४०-४१।। प्रश्न--संसार के अन्दर सबसे नीच पुरुष कौन है ? उत्तर--जो अनेक प्रकार ||४८ के तपों का आचरण करनेवाला तो हो, परन्तु इन्द्रियरूपी शत्रुओं के घातने में असमर्थ हो अर्थात् विषयों का लम्पटी होने के कारण इन्द्रियों को वश में करनेवाला न हो । प्रश्न--संसार में विद्वान पुरुष कौन है ? उत्तर--जो हर एक पदार्थ का वास्तविक रूप से विचार करनेवाला हो, यह पदार्थ त्यागने योग्य है एवं यह पदार्थ ग्रहण करने योग्य है। F5 Jain Education international For Privale & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002720
Book TitleMallinatha Purana
Original Sutra AuthorSakalkirti Acharya
AuthorGajadharlal Jain
PublisherVitrag Vani Trust Registered Tikamgadh MP
Publication Year2002
Total Pages116
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size8 MB
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