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को ही मोक्षरूपी अनुपम महल की पहिली सीढ़ी एवं धर्म का बीज बतलाया गया है । ग्रन्थकार सम्यग्दर्शन के लिए यहाँ तक अपने पवित्र भाव प्रकट करते हैं कि जिस महानुभाव पुरुष ने सम्यग्दर्शन को प्राप्त कर लिया है, वही पुरुष मोक्षमार्ग में स्थित है एवं वही तीन लोक की लक्ष्मी का भोगनेवाला है, ऐसा मैं मानता हूँ तथा जिस महापुरुष के हृदय में अमूल्य सम्यग्दर्शनरूपी रत्न विराजमान है, वही महानुभाव इहलोक एवं परलोक में विद्वानों की दृष्टि में महाधनवान है । उससे बढ़कर अन्य कोई धनवान नहीं ।।५६-५८।। धन तो केवल इसी लोक में सुख एवं दुःख का ||श्रा देनेवाला है, परन्तु सम्यग्दर्शनरूपी चिन्तामणि रत्न ऐसा है, जिससे तीनों लोक में सुख ही सुख मिलता है। सम्यग्दर्शन || से श्रेष्ठ न तो कोई संसार में बन्धु है एवं न सदा हित करनेवाला स्वामी है, क्योंकि यह सम्यग्दर्शन जीवों को स्वर्ग एवं मोक्ष के सुखों को प्रदान करनेवाला है, समस्त पापों का जड़ से नाश करानेवाला एवं धर्म को प्राप्त करानेवाला है ।।५६-६०।। इसलिये ग्रन्थकार इस बात पर बल देते हैं कि जीवों को चाहिये कि ऐसे परम उपकारी एवं सर्वदा हितकारी सम्यग्दर्शन को सबसे पहिले प्राप्त करें, क्योंकि इस सम्यग्दर्शन की सामर्थ्य से मुक्तिरूपी लक्ष्मी वश हो जाती है तथा मिथ्यात्व की सन्तान को जड़ से उखाड़ कर यही सम्यग्दर्शन तीर्थंकर आदि की अनुपम विभूति को प्रदान करता है। ___ जिस ज्ञान के द्वारा जीवादि पदार्थ आगम एवं गुरुओं का यथार्थ रूप से जानना (ज्ञान) होता है तथा यह देव है तथा यह कुदेव है--इस बात की भी अच्छी तरह पहचान होती है, वह व्यवहार नाम का सम्यग्ज्ञान है तथा व्यंजनोर्जित १, अर्थसमग्र २, शब्दार्थोपूर्ण ३, कालाध्ययन ४, उपाध्यानसमृद्धक ५, विनय ६, गुर्वाद्यनपह्नव ७ एवं बहुमानससमृद्धक ८--ये आठ प्रकार के आचार माने हैं । जहाँ पर शुद्ध अक्षरों का निरूपण है, वह 'व्यन्जनोर्जित' नाम का आचार माना है । जहाँ पर शुद्ध अर्थ का प्रतिपादन हो वह ‘अर्थसमग्र' नाम का आचार है, जहाँ पर शब्द एवं अर्थ दोनों का सूचन हो, वह 'शब्दार्थोभयपूर्ण' नाम का आचार है । जहाँ पर समस्त काल अध्ययन का निषेध हो, अर्थात्--जहाँ पर नियत समय में अध्ययन का प्रतिपादन हो, वह 'कालाध्ययन' नाम का आचार है । जहाँ पर तप आचरण के साथ-साथ अध्ययन का विधान हो, वह 'उपाध्यानसमृद्धक' नाम का आचार है । जहाँ पर विनयपूर्वक पाठ का पढ़ना हो, वह 'विनय' नाम का आचार है । जहाँ पर अपने गुरु आदि की कीर्ति का गान किया
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