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गुणों में प्रीति करना है, वह तीसरा निर्विचिकित्सित अंग है। मिथ्यामार्ग दुःखों को देनेवाला है तथा उसके अनुगामी किसी प्रकार के उत्तम मार्ग पर चलनेवाले नहीं, इसलिये जब कभी उस मिथ्यामार्ग एवं मिथ्यामार्ग पर चलनेवालों की प्रशंसा का अवसर प्राप्त हो उस समय अपनी ओर से किसी प्रकार से सम्मति नहीं देना, न सम्बन्ध रखना एवं न उनके चकमे में आकर किसी प्रकार की प्रशंसा करना, चौथा अमूढदृष्टि अंग है । यद्यपि भगवान जिनेन्द्र द्वारा बतलाया गया मार्ग स्वयं शुद्ध है तथापि अत्यन्त कठिन होने से धारण न कर सकने के कारण यदि कोई अज्ञानी तथा असमर्थ पुरुष उसकी निन्दा कर बैठे तो किसी भी उपाय से उस निन्दा को दूर करना--निन्दा न होने देना, पाँचवा उपगूहन अंग है । किसी भी तीव्र दुःख आदि कारण से धर्मात्मा मनुष्यों की परिणति सम्यग्दर्शन या सम्यक्चारित्र के पथ से विचलित हो उठी हो एवं वे उनसे विमुख रहना चाहते हों, तो जैनागम के वास्तविक ज्ञानियों का कर्त्तव्य उन धर्मात्माओं को सम्यग्दर्शन तथा सम्यक्चारित्र के अन्दर फिर से दृढ़ कर देना है, यह छट्ठा स्थितीकरण अंग है। हृदय में उत्तम भाव रख कर अपने साधर्मी भ्राताओं का जो निश्चलरूप से यथायोग्य आदर-सत्कार करना है, वह सातवाँ वात्सल्य अंग है तथा संसार में जो बहुलरूप से अज्ञान अन्धकार फैल रहा है, उसे यथायोग्य किसी न किसी उपाय से दूर कर जो भगवान जिनेन्द्र के शासन का माहात्म्य प्रकट करना है, वह प्रभावना अंग कहा जाता है। इन आठ अंगों के पालक अन्जन चोर आदि महापुरुषों ने अनुपम फल प्राप्त किया है एवं इन अंगों का माहात्म्य वर्णन करते-करते यहाँ तक कहा गया है कि जिस प्रकार एक भी अक्षर की कमी रखनेवाला मन्त्र विष की वेदना को दूर नहीं कर सकता, उसी प्रकार इन आठ अंगों में एक भी अंग से रहित सम्यग्दर्शन भी जन्म की सन्तति (संसार-चक्र) को नष्ट नहीं कर सकता ।
ग्रन्थकार सम्यग्दर्शन की महिमा दिखलाते हुए कहते हैं कि जिस प्रकार बलवान राजा शत्रुओं के समूह को देखते-देखते ही तितर-बितर कर नष्ट कर देता है, उसी प्रकार सारभूत एवं उत्कृष्ट जिन आठ अंगों का ऊपर वर्णन ||८ किया गया है, उनसे युक्त सम्यग्दर्शन जिस समय भी बलवान हो जाता है, उस समय वह क्षण भर में कर्मरूप बैरियों को जड़ से उखाड़ कर दूर फेंक देता है ।। ५५।भगवान जिनेन्द्र ने सम्यग्ज्ञान एवं सम्यक्चारित्र का मूल कारण सम्यग्दर्शन को ही कहा है, क्योंकि बिना सम्यग्दर्शन के वे मिथ्याज्ञान तथा मिथ्याचारित्र माने जाते हैं। सम्यग्दर्शन
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