________________
"भगवन ! आपने जो मुझे धर्म-वृद्धि स्वरूप आशीर्वाद दिया है, मैं नहीं समझता कि वह धर्म क्या है, कौन उसे || प्राप्त कर सकता है एवं क्या उसका फल है ? इसलिये आपके ही श्रीमुख से मुझे उस धर्म की प्राप्ति के उपायों की एवं उसके फल जानने की इच्छा हुई है ।।४२।। हे कृपानाथ ! जिस प्रकार रात्रि का प्रबल अन्धकार बिना सूर्य के प्रकाश के नष्ट नहीं होता, उसी प्रकार मेरे अन्दर भी धर्म के विषय में जो संशय या अज्ञान अन्धकार है, वह भी
आपके वचनरूपी सूर्य के बिना मिट नहीं सकता' ।।४३।। राजा वैश्रवण की इस प्रकार उत्कट धर्म-जिज्ञासा सुन म|| मुनिराज ने कहा-'राजन् ! तुम्हारे अभीष्ट पदार्थ की सिद्धि हो, इसलिये मैं संक्षेप में धर्म का व्याख्यान करता हूँ, | तुम चित्त को एकाग्र कर ध्यानपूर्वक सुनो--
हे राजन् ! यह संसार अपार है एवं इसमें अगणित एवं अनेक प्रकार का दुःख है । इस अगणित संसार के ना|| दुःख से मुक्त कर जो योगियों को अनन्त सुख-स्वरूप मोक्ष में ले जाकर रक्खे अर्थात् परमानन्दमय सुख का थ|| रसास्वादन करावे उसी को वास्तविक धर्म कहा गया है ।।४४-४५।। इस धर्म की कृपा से जिनकी सेवा करने से
बड़े-बड़े चक्रवर्ती आदि भी सन्नद्ध रहते हैं तथा इसी संसार में आश्चर्यकारी उत्तमोत्तम सुखों को प्रदान करते हैं ऐसे | उत्तमोत्तम भोग तथा भाँति-भाँति की सम्पदाएँ प्राप्त होती हैं, परभव में जिसे समस्त देव मस्तक झुका कर नमस्कार करते हैं तथा जो दिव्यपद माना जाता है, ऐसा वह इन्द्रपद भी धर्म की कृपा से ही प्राप्त होता है एवं अहमिन्द्र पद || रा भी, जो अत्यन्त दुर्लभ है--दूसरे उपाय से प्राप्त नहीं किया जा सकता--वह भी इस पवित्र धर्म की कृपा से सुलभ रूप से प्राप्त हो जाता है ।।४६।। धर्मात्मा लोग धर्म के द्वारा तीनों लोक के समस्त ऐश्वयों को उपार्जित कर कालक्रम से मोक्ष को प्राप्त करते हैं, जिसमें अविनाशी सुख प्राप्ति होता है। व्यवहार तथा निश्चय के भेद से सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान तथा सम्यक्चारित्र दो-दो प्रकार के हैं । गृहस्थों के व्यवहार सम्यग्दर्शन आदि होते हैं तथा निश्चय सम्यग्दर्शन आदि संयमी मुनियों के ही होते हैं । जिस धर्म का ऊपर उल्लेख किया गया है, वह धर्म व्यवहार सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान तथा सम्यक्चारित्र से भी प्राप्त होता है तथा संयमी पुरुषों को निश्चय सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान तथा सम्यक्चरित्र से प्राप्त होता है अर्थात् व्यवहार सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान तथा सम्यक्चारित्र भी धर्म माना जाता है तथा निश्चय सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान तथा सम्यकचारित्र भी धर्म माना जाता है ।।४८-४६।। व्यवहार सम्यग्दर्शनादि
444444
Jain Education international
For Privale & Personal Use Only
www.jainelibrary.org