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॥ श्री मल्लिनाथाय नमः ॥
श्री मल्लिनाथ पुराण
भाषाकार का मंगलाचरण सर्वविघ्न हर्ता प्रभु मल्लिनाथ जिनराज । जिन मंगल कारण नमूं धारि माथ पद आज ॥१॥ ज्ञान योग तप लीन नित रहित परिग्रह धीर । विषय वासना विमुख गुरु मेटो मम भवपीर ॥२॥ बन्दूँ वाणी भगवती स्याद्वादमय शुद्ध । जा प्रसादतें होत हैं भव्यजीव प्रतिबुद्ध ॥३॥
ग्रन्थाकार का मंगलाचरण नमः श्रीमल्लिनाथाय कर्ममल्ल विनाशिने । अनन्तमहिमाप्ताय त्रिजगत्स्वामिनेऽनिशम् ॥१॥ शेषान् सर्वान् जिनान्वन्दे धर्मचक्रप्रवर्तकान् । विश्वभव्यहितोयुक्तान पंचकल्याणनायकान् ॥२॥ गुणाष्टकमयान् सिद्धास्त्रैलोक्याग्रनिवासिनः । ध्येयान् मुन्यादिभव्यौघैः स्मरामि हृदये सदा ॥३॥ आर्हती भारती पूज्या लोकालोकप्रदीपिका । रजोविधूयने नियं तनोतु विपुलं मतिं ॥४॥ आचार्यान् पाठकान् साधून् गुरुनाचारतत्परान् । श्रुताब्धीन शिरसा वन्दे सर्वांश्च योगसाधकान् ॥५॥ रत्नत्रयं नमस्कृत्य कर्मघ्नं शर्मसागरं । रत्नत्रयविधान फलसूचनहे तवे ॥६॥ मल्लिनाथजिनेन्द्रस्य चरित्रं पावनं परं । समासेन प्रवक्ष्यामि स्वान्ययो हितसिद्धये ॥७॥
जिनका जीतना बड़े क्लेश से हो सकता है, ऐसे ज्ञानावरण आदि कर्मरूपी मल्लों को जड़ से नष्ट करनेवाले, अनन्तविज्ञान, अनन्तवीर्य, अनन्तसौख्य एवं अनन्तदर्शन स्वरूप अनन्त चतुष्टय महिमा के धारक एवं
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