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है, उस उत्तम विधि को जो विद्वान महानुभाव भक्तिपूर्वक करते हैं, वे उसके फलस्वरूप मनुष्य तथा देवलोक सम्बन्धी अनुपम सुख को प्राप्त करते हैं । उग्र तप से समस्त कर्मों को खपा (विनष्ट) कर श्रीमल्लिनाथ भगवान के समान तीनों लोक के जीवों से पूजित होते हैं, तत्पश्चात् चारों ओर से सिद्धों से भरी हुई मोक्षगति को प्राप्त करते हैं ।। १६१।। संसार में यह दिव्य रत्नत्रय असाधारण गुणों का पिटारा है, तीनों लोक के नाथों (स्वामियों) द्वारा बन्दनीक संसाररूपी महाभयंकर भुजंग को वश में करनेवाला उत्तम मन्त्र है । इस परम पावन रत्नत्रय की मैंने जो इस ग्रन्थ में वन्दना एवं स्तुति की है, वह समस्त पाप कर्मों के नाश के लिए, पूर्ण रत्नत्रय की प्राप्ति के लिए एवं मुझे लिपरम सुमति की प्राप्ति हो, इस अभिलाषा से की है; इसलिए मेरी यह सविनय प्रार्थना है कि रत्नत्रय की स्तुति एवं ल्लि वन्दना से मेरे समस्त दुष्कर्मों का सर्वथा नाश हो । मुझे पूर्ण रत्नत्रय का लाभ हो तथा मुझे परम सुमति की प्राप्ति हो ।। १६२ ।।
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इस श्री मल्लिनाथ पुराण के अन्दर समस्त आठ सौ चौहत्तर श्लोक हैं, जो कि श्री मल्लिनाथ भगवान का चरित्र वर्णन करने के कारण सारभूत हैं ।। १६३।।
इस प्रकार भट्टारक श्री सकलकीर्ति द्वारा विरचित मल्लिनाथ पुराण में श्री मल्लिनाथ भगवान का धर्मोपदेश और पु निर्वाण गमनका वर्णन करने वाला सातवां परिच्छेद समाप्त हुआ ।
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