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________________ *cesonanceReacreen* । तृतीयः सर्गः *earacaRepeae अथ तेन मनोवेगपुरःसरमपि क्षणात् । प्रापे पश्चाद्विधायेव रंहसा रजताचलः ॥१॥ रेजे जवानिलाकृष्ट नाकारी पयोधरैः । तस्यान्वितो विचित्रैर्वा विमानोऽन्य विमानकैः ॥२॥ व्योम्नीवामान्तमुन्नत्या स्वं विचिन्त्य समन्ततः। वितत्य विक्षु सर्वासु स्वाङ्गानि भुवि यः स्थितः ॥३।। क्वचिन्नोलप्रभाजालस्तमःपुजरिवाचितः' । अन्यत्र लोहितालोकैदिवाबीजैरिवोज्ज्वलैः ॥४॥ क्वचिच्च विद्वमाकीर्णः स्थलीभूत इवार्णवः। नागलोक इवान्यत्र नागेन्द्रशतसंकुलः ॥५॥ पादच्छायाश्रिताशेषमहासत्त्वसमुन्नतः । सदा विद्याधरान्बिभ्रद्विद्याविद्योतितात्मनः ॥६॥ संचरच्चमरोचारबालव्यजनवोजितः । महासिंहासनो भाति चक्रवर्तीव योऽपरः ॥७॥ (षड्भिः कुलकम् ) तृतीय सर्ग अथानन्तर वह क्षण भर में इतने वेग से विजयाध पर्वत पर पहुंच गया मानों वेग से चलने वाले मन को भी उसने पीछे कर दिया था ॥१॥ वेग की वायु से आकृष्ट नाना प्रकार वाले मेघों से सहित उसका विमान ऐसा सुशोभित हो रहा था मानों चित्र विचित्र अन्य विमानों से ही सहित हो ॥२॥ जो विजया पर्वत ऊंचाई के कारण अपने आपको आकाश में न समाता हुआ विचार कर ही मानों समस्त दिशाओं में सब ओर अपने अङ्गों को फैला कर पृथिवी पर स्थित था ।।३।। कहीं तो वह पर्वत नील प्रभा के समूह से ऐसा जान पड़ता था मानों अन्धकार के समूह से ही व्याप्त हो और कहीं लाल लाल प्रकाश से ऐसा सुशोभित होता था मानों देदीप्यमान दिन के बीजों से ही यक्त हो॥४॥ कहीं मुगाओं से ऐसा व्याप्त था जिससे स्थलरूप परिणत समुद्र के समान जान पडता था। कहीं सैकड़ों नागेन्द्रों-बड़े बड़े सर्पो से युक्त था इसलिये नागलोक के समान मालूम होता था ।।५।। प्रत्यन्त पर्वतों की छाया में बैठे हुए समस्त बड़ी अवगाहना के जीवों से जो ऊंचा उठ रहा था तथा विद्या से जिनकी आत्मा आलोकित थी ऐसे विद्याधरों को सदा धारण करता था ।।६।। चारों पोर चलने वाले चमरी मृगों के सुन्दर बाल जिस पर चमर ढोर रहे थे तथा बड़े बड़े सिंह जिस पर * मनोवेगं ब०१ व्याप्तः २ रक्तवर्ण प्रकाशैः ३ प्रबालाचित:४ द्वितीयः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002718
Book TitleShantinath Purana
Original Sutra AuthorAsag Mahakavi
AuthorHiralal Jain, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherLalchand Hirachand Doshi Solapur
Publication Year1977
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size20 MB
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