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________________ ( ३६) जिनेन्द्र के चक्रवर्ती होने की घोषणा की । शान्तिजिनेन्द्र चतुरङ्गिणी सेना के साथ दिग्विजय को निकले । दिग्विजय का विस्तृत वर्णन । इसी बीच में संध्या, रात्रि के तिमिर, चन्द्रोदय, तथा सूर्योदय आदि का प्रासङ्गिक वर्णन । पञ्चदश सर्ग चक्रवर्ती के सुख का उपभोग करते हुए जब शान्ति जिनेन्द्र के पच्चीस १-३२ । २१४-२१७ हजार वर्ष व्यतीत हो गये तब वे संसार से निवृत्त हो अपने आपको मुक्त करने की इच्छा करने लगे । सारस्वत प्रादि लौकान्तिक देवों ने पाकर उनकी वैराग्य भावना को वृद्धिंगत किया। भगवान् ने नारायण नामक पुत्रको राज्य देकर ज्येष्ठ कृष्ण चतुर्दशी के दिन दीक्षा धारण कर ली। दीक्षा कल्याणक के लिये देव नाना वाहनों पर चढ़ कर आये। भगवान् ने ऊपर की ओर मुखकर लोकाग्रभाग में बिराजमान सिद्ध परमेष्ठियों को नमस्कार कर पञ्च मुष्टियों द्वारा केशलोंच कर सब परिग्रह का त्याग कर दिया। दीक्षा लेते ही उन्हें मनःपर्ययज्ञान तथा सब ऋद्धियां प्राप्त हो गईं। तदनन्तर सहस्राम्रवन में नन्दिवृक्ष के नीचे शुद्ध शिला पर आरूढ होकर ३३-६३ । २१७-२२० उन्होंने शुक्लध्यान के द्वारा घातिया कर्मों का क्षय किया और उसके फलस्वरूप पौषशुक्ला दशमी के दिन अपराह्नकाल में केवलज्ञान प्राप्त किया । अनन्त चतुष्टय से उनकी प्रात्मा प्रकाशमान हो गई। देवों ने समवसरण की रचना की । गन्धकुटी में शान्तिजिनेन्द्र अन्तरीक्ष विराजमान हुए और चक्रायुध आदि मुनिराज तथा अन्य देव बारह सभाओं में बैठे। इन्द्र की प्रार्थना के उत्तर स्वरूप उन्होंने दिव्यध्वनि के द्वारा सम्यग्दर्शन, ६४-१२६ । २२०-२२० उसके सराग और वीतराग भेद, साततत्त्व, प्रत्यक्ष और परोक्ष प्रमाण, मतिश्रत आदि ज्ञान तथा उनके भेद, नैगम संग्रह प्रादि नय, औपशमिक आदि भाव तथा उनके भेदों का निरूपण किया। साथ ही अजीव तत्त्व का वर्णन करते हुए उसके पुदगल, धर्म, अधर्म, १२७-१४१ । २२७-२२९ आकाश तथा काल द्रव्य का स्वरूप बताया। शान्तिनाथ भगवान् Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002718
Book TitleShantinath Purana
Original Sutra AuthorAsag Mahakavi
AuthorHiralal Jain, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherLalchand Hirachand Doshi Solapur
Publication Year1977
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size20 MB
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