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________________ ( ३६ ) द्वादश सर्ग एक बार राजा मेघरथ ने कार्तिक मास का शुक्ल पक्ष आने पर नगर में १-६२ । १५१-१५७ जीव दया की घोषणा कराई और स्वयं तेला का नियम लेकर अष्टाह्निक पूजा करते हुए मन्दिर में बैठ गये । किसी समय राजा मेघरथ राजसभा में बैठे थे उसी समय एक कबूतर 'रक्षा करो रक्षा करो' चिल्लाता हुआ इनकी शरणमें पाया और उसके पीछे एक बाज पक्षी पाया । बाज ने मनुष्य की बोली में कहा कि आप कैसे सर्वदयालु हो सकते हैं जब कि मैं भूख से व्याकुल हो रहा हूं। यह मेरा भोज्य है इसे मुझे खाने दीजिये । इसके उत्तर में राजा मेघरथ ने दान के भेद, देने के योग्य पदार्थ और पात्र आदि का अच्छा उपदेश दिया तथा कबूतर और बाज के पूर्वभवों का वर्णन कर उन्हें निर्वैर कर दिया । उन पक्षियों के मनुष्य की बोली में बोलने का कारण भी बतलाया कि एक सुरूप नामका देव इन्द्र की सभा में मेरी दयालुता की प्रशंसा सुन कर परीक्षा के लिये आया है। इसी देव ने इन पक्षियों को मनुष्य की बोली दी है । यह सुन कर देव अपने असली रूप में प्रकट हुआ और पारिजात के फूलों से घनरथ की पूजा कर कृत कृत्य हुआ। तेला का उपवास समाप्त होने पर राजा मन्दिर से अपने भवन गये। एक ६३-७१ । १५७-१५७ समय दमधर नामक मुनिराज ने राजा मेघरथ के घर में प्रवेश किया। राजा ने भक्ति भाव से उन्हें आहार दान दिया जिससे देवों ने पञ्चाश्चर्य किये। एक समय राजा मेघरथ रात्रि में प्रतिमायोग से विराजमान होकर आत्म- ७२-८४ । १५७-१५६ ध्यान कर रहे थे। इन्द्र ने उन्हें परोक्ष नमस्कार किया। इन्द्राणी ने पूछा कि आपने किसे नमस्कार किया है ? इन्द्र ने राजा मेघरथ की बड़ी प्रशंसा की। उसी समय दो देवियां-अरजा और विरजा पृथिवी पर आकर उनकी परीक्षा के लिये शृङ्गार चेष्टाएं करने लगीं परन्तु वे ध्यान से विचलित नहीं हुए । तब देवाङ्गनाओं ने असली रूप में प्रकट होकर उनकी स्तुति की। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002718
Book TitleShantinath Purana
Original Sutra AuthorAsag Mahakavi
AuthorHiralal Jain, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherLalchand Hirachand Doshi Solapur
Publication Year1977
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size20 MB
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