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(३२) गये । पुत्रों के वियोग से राजा श्रीषेण उसकी स्त्री सिंहनन्दा तथा
सत्यभामा ये सब विष पुष्प सूघ कर मर गये। राजा श्रीषेण, सिंहनन्दा, अनिन्दिता और सत्यभामा के जीव धातकी खण्ड १०३-११२ । ६२-६३
के उत्तर कुरु में आर्य तथा प्रार्या हुए। वहां से चलकर सौधर्म स्वर्ग में उत्पन्न हुए । श्रीषेण राजा का जीव स्वर्ग से चयकर अमिततेज
हुआ और सिंहनन्दा त्रिपृष्ठ की पुत्री स्वयंप्रभा हुई है। अनिन्दिता, तुम्हारा पुत्र श्री विजय हुई है । सुतारा, सात्यकि की पुत्री ११३-१२४ । ६३-६४
सुतारा है। कपिल ब्राह्मण का जीव नाना योनियों में भ्रमण करता हुआ भृगशृङ्ग नामका जटाधारी साधु हुआ। पश्चात् मरकर अशनिघोष हमा। सतारा, सत्यभामा का जीव था। पूर्व स्नेह के कारण अशनिघोष ने सत्यभामा का हरण किया। प्रशनिघोष अपने
पूर्वभव सुनकर संसार से विरक्त हो मुनि हो गया। चारण ऋद्धिधारी मुनि ने त्रिपृष्ठ के पूर्व भवों का वर्णन किया। १२५-१५० । ६४-६७ अमित तेज और श्री विजय ने मुनिराज के मुख से अपनी छत्तीस दिन की १५१-१८३ । ६८-१..
आयु जानकर सन्यास धारण कर लिया जिससे दोनों ही आनत स्वर्ग में आदित्यचूल और मरिण चूल देव हुए। आदित्यचूल का जीव स्वर्ग से चय कर प्रभाकरी नगरी के राजा के अपराजित नामका पुत्र हुआ और मणिचूल का जीव अनन्तवीर्य हुमा । अनन्तवीर्य ने दमितारि चक्रवर्ती को मारा था इसलिये वह नरक गया। वहां से निकलकर जम्बू द्वीप-भरतक्षेत्र-विजयाई पर्वत की उत्तर श्रेणी के गगनवल्लभ नगर में मेघवाहन विद्याधर का मेघनाद नामका पुत्र हुा । अच्युतेन्द्र के संबोधन से मेघनाद ने राज्यपद छोड़कर मुनिदीक्षा धारण करली तथा तप के प्रभाव से अच्युतस्वर्ग में प्रतीन्द्र पद प्राप्त किया।
नवम सर्ग जम्बू द्वीप के पूर्व विदेह क्षेत्र में सीता नदी के दक्षिण तट पर मङ्गलावती १-२१ । १०१-१०३
देश है । उसमें रत्नसंचयपुर नगर है। वहां क्षेमंकर नामका राजा था। और कनक चित्रा उसकी स्त्री का नाम था। .
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