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________________ तदनन्तर प्रमुख मन्त्री बहुश्रुत ने कहा कि मैं इन दोनों भाइयों की ५०-५६ । १९-२. अपरिमित शक्ति को जानता हूँ और निमित्तज्ञ से मैंने यह भी सुना है कि ये दमितारि को नष्ट कर समस्त विद्याधरों को अपने अधीन करेंगे । इसलिए इन्हें जाने दिया जाय । साथ ही चक्रवर्ती के दूत को सत्कृत कर उसके माध्यम से चक्रवर्ती की पुत्री की याचना करना चाहिए। इसीके बीच राजा अपराजित ने कोषाध्यक्ष के द्वारा एक त्रिजगभूषण ६०-६५ । २०-२३ नामका बहुमूल्य रत्नहार चक्रवर्ती के दूत के पास भेजा । दूत प्रभावित होकर उसी समय कोषाध्यक्ष के साथ राजसभा में प्राकर राजा अपराजित की स्तुति करने लगा। इसी संदर्भ में बहुश्रु तमंत्री ने चक्रवर्ती दमितारि और राजा अपराजित के वंशों के पूर्वागत सम्बन्ध की चर्चा करते हुए कहा कि अनन्तवीर्य के लिये चक्रवर्ती की पुत्री दी जावे जिससे दोनों वंशों के सम्बन्ध चिरस्थायी हो जावें। दूत ने इस पर अपनी सहमति प्रकट की। . तदनन्तर बहुश्रुत मन्त्री की मन्त्रणा के अनुसार दूत के लिये गायिकाएं ६६-१०२ । २३-२६ सौंप दी गई। यहां यह ध्यानमें रखने के योग्य है कि ये गायिकाएं नहीं र्थी किन्तु उनके वेषमें राजा अपराजित और अनन्तवीर्य थे। तृतीय सर्ग १-३२ । २६-२८ तदनन्तर वह दूत शीघ्र ही विजयाध पर्वत पर पहुंच गया। पर्वत की अनुपम शोभा देख सभी को प्रसन्नता हो रही थी दूत ने गायिकाओं के लिये विजया पर्वत की सुन्दरता का वर्णन किया । वर्णन करता हुआ वह गायिकाओं के साथ चक्रवर्ती के शिवमंदिर नगर पहुंचा। ३३-७४ । २८-३२ शिवमन्दिर नगर की सुन्दरता का वर्णन करता हुआ दूत गायिकाओं के मन को प्रसन्न कर रहा था। तदनन्तर दूत ने अपना विमान आकाश से राजसभा के अङ्गण में उतारा । द्वारपाल के द्वारा अमित दूत के वापिस आने की सूचना चक्रवर्ती को दी गई। दूत ने चक्रवर्ती को नमस्कार कर गायिकाओं के आगमन का सुखद समाचार सुनाया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002718
Book TitleShantinath Purana
Original Sutra AuthorAsag Mahakavi
AuthorHiralal Jain, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherLalchand Hirachand Doshi Solapur
Publication Year1977
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size20 MB
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