________________
( २५) अपराजित और अनन्तवीर्य समवसरण से नगरी में वापिस पाये । पति के ७४-७८ । १.
वियोग से विह्वल माताओं को सान्त्वना देकर उन्होंने मंत्रियों के
अनुरोध से अलसाये मन से समस्त क्रियाएं कीं। मंत्रियों ने अपराजित का राज्याभिषेक किया परन्तु उसने राज्य का सारा ७६-८६ । १०-११
भार अपने अनुज अनन्तवीर्य को सौंप दिया। दोनों में प्रखण्ड प्रीति
थी इसलिए किसी भेदभाव के बिना ही राज्यशासन चलता रहा। तदनन्तर एक दिन एक विद्याधर ने आकाश मार्ग से आकर कहा कि ९०-१०५ । १२-१३
नारदजी ने दमितारि चक्रवर्ती को आपकी किरातिका तथा वर्वरिका नामक गायिकाओं का परिचय दिया है तथा कहा है कि वे गायिकाएं आपके ही योग्य हैं। नारदजी के कथन से प्रभावित हो चक्रवर्ती ने उन गायिकाओं को लेने के लिये मुझे आपके पास भेजा है। इतना कहकर दूत ने उन्हें एक मुहरबंद भेंट की। उस भेंट के खोलने पर चांदनी के समय उज्जव हार देखकर उसे पूर्वभव का स्मरण हो गया।
द्वितीय सर्ग दमितारि चक्रवर्ती ने हार सहित दूत भेजकर गायिकाओं की मांग की थी १-११ । १४-१५
इस पर विचार करने के लिए राजा अपराजित और उनके अनुज अनन्तवीर्य ने मन्त्रशाला में प्रवेश कर सबके समक्ष इस घटना को
विचारार्थ प्रस्तुत किया। इस प्रसङ्ग में सन्मति नामक मन्त्री ने दमितारि चक्रवर्ती की प्रभुता और १२-२८ । १५-१७
बलिष्ठता का वर्णन करते हुए उसकी अधीनता स्वीकृत कर लेना
चाहिए यह संमति दी। अनन्तवीर्य ने इसके विपरीत बोलते हुए कहा कि दमितारि चक्रवर्ती ने २९-४२ । १७-१८
गायिकाओं की मांग की है और उनके न दिये जाने पर वह बलाद्
आक्रमण कर उन्हें लेना चाहता है । यह अपमान की बात है। राजा अपराजित ने भी अनन्तवीर्य के पक्ष का समर्थन करते हुए कहा कि ४३-४६ । १६
हम दोनों भाई विद्याबल से गायिकाओं का रूप रखकर दमितारि के पास जाते हैं और उसके बलाबल को प्रत्यक्ष देखते हैं आप लोग किसी अनिष्ट की आशङ्का न करें।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org