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त्रयोदशः सर्गः
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प्रयास्ति मारते वास्ये जम्बूद्वीपोपशोभिते । 'जनान्तः कुरवो लक्ष्म्या जितोत्तरकुरुधु तिः ॥१॥ यत्र धोरैः समर्याद। सागरैरिव साधुभिः । नार्थी स्वयंप्राहरसप्रसरो जातु वार्यते ॥२॥ अन्योन्यप्रणयाकृष्ठमानसे वियोगिता कोलापुगेम्वेव ते जलसंगतिः॥३॥ अन्तःसंक्रान्ततीरस्थरक्ताशोकालिपल्लवैः । सरोमिभूयते यत्र 'सविद्रुमबनैरिव ॥४॥ चित्रपवान्विता रम्याः पुष्पेषूज्ज्वलया धिया। कल्पवल्ल्य इवाभान्ति यत्र रामा मनोरमाः ॥५॥
त्रयोदश सर्ग अथानन्तर जम्बूद्वीप में सुशोभित भरत क्षेत्र में लक्ष्मी से उतरकुरु की शोभा को जीतने वाला कुरु देश है ॥१।। जहां समुद्रों के समान मर्यादा से सहित, धीरवीर साधु पुरुषों के द्वारा स्वयंग्राह रस के समूह-मन चाही वस्तु को स्वयं लेने की भावना से सहित याचक कभी रोका नहीं जाता है। भावार्थ-जहां मन चाही वस्तु को स्वयं उठाने वाले याचक जन को कभी कोई रोकता नहीं है ॥२॥ जहां परस्पर के प्रेम से आकृष्ट हृदय वाले चकवा चकवी में ही वियोगिता-विरह था जल संगतिपानी की संगति देखी जाती है वहां के मनुष्यों में विरह तथा जड़-मूर्ख जनों की संगति नहीं देखी जाती है ॥३॥ जहां भीतर प्रतिबिम्बित तटवर्ती लाल अशोक वृक्षावलि के पल्लवों से युक्त सरोवर ऐसे हो जाते हैं मानों मूगा के वन से ही सहित हों ॥४॥ जहां सुन्दर स्त्रियां कल्पलताओं के समान सुशोभित हैं क्योंकि जिसप्रकार स्त्रियां चित्रपत्रान्वित-नाना प्रकार के बेल बूटों से सहित होती हैं उसी प्रकार वहां की लताएं भी नाना प्रकार के पत्तों से सहित थीं, और जिस प्रकार स्त्रियां पुष्पैषूज्ज्वलया श्रिया-काम से उज्ज्वल शोभा से रमणीय होती हैं उसी प्रकार वहां की लताएं भी पुष्पेषुफूलों पर उज्ज्वल शोभा से रमणीय थीं ॥५।। जिन्होंने अपनी विभूति याचकों के उपभोग के लिये
१ देशः 8 जाङ्गलः ब. २ विरहिता ३ जलसंगतिः पक्षे जडसंगतिः ४ प्रवालवनसहित रिव ५ रामा पक्षे पुष्पेषुः कामस्तेन उज्ज्वलया शुक्लया । कल्पवल्ली पक्षे पुष्पेषु कुसुमेषु उज्ज्वलया दीप्तया ।
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