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(१८) अन्तिम सर्गों में जैन सिद्धान्त का विशद वर्णन है । जहां संभव दिखा वहां तुलनात्मक टिप्पण भी दिये गये हैं। प्रारम्भ में विषय सूची स्तम्भ में शान्तिनाथ पुराण का कथासार दिया गया है । एक बार मनोयोग पूर्वक विषय सूची पढ़ लेने से ही ग्रंथ का कथावृत्त हृदयंगत हो सकता है। अंत में श्लोकानुक्रमणिका दी है। वर्धमान चरित में पारिभाषिक भौगोलिक, व्यक्तिवाचक और साहित्यिक विशिष्ट शब्दों का कोष दिया था पर पुराण ग्रंथों में उसका उपयोग कम होता है और निर्माण में श्रम अधिक होता है इसलिये इसमें वह नहीं दिया गया है । आभार प्रदर्शन :
शुद्ध पाठ के निर्धारण तथा हिन्दी अनुवाद में वयोवृद्ध एवं अभीक्ष्ण ज्ञानोपयोगी पं० जिनदास जी शास्त्री फडकुले सोलापुर के मराठी अनुवाद सहित संस्करण से सहायता प्राप्त हुई है अतः उनका आभारी हूँ । इसका प्रकाशन जैन संस्कृति संरक्षक संघ ( ब्र. जीवराज जैन ग्रन्थ माला) सोलापुर की ओर से हो रहा है इसलिये उसके मन्त्री सौजन्य मूर्ति श्री बालचन्द्रजी शहा का आभारी है। मेरा जीवन व्यस्तताओं से भरा है फिर भी दैनिक चर्या के निष्पादन से जब कभी जो समय शेष बच जाता है उसका उपयोग जिनवाणी की उपासना में कर लेता हूं। इसी के फल स्वरूप इस पुराण का संपादन और अनुवाद हो सका है। ज्ञानावरण के क्षयोपशम के अनुसार मैंने अनुवाद आदि में सावधानी तो रखी है पर फिर भी अनेक त्रुटियों का रह जाना संभव है । दूर होने के कारण मैं प्रफ नहीं देख सका हूं। इसका दायित्व प्रेस के स्वामी ने ही निभाया है । अतः इन सब टियों के लिये मैं विद्वज्जनों से क्षमा प्रार्थी हूं।
वर्णीभवन-सागर ६-३-१९७७
विनीत पन्नालाल साहित्याचार्य
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