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द्वादशः सर्गः इति निर्वृत्य' शुद्धात्मा ग्यामिनीयोगमखसा। चिरं रराज राजेन्द्रो जनः प्रातरपीक्षितः ॥४॥ मथाभ्यागमता केचित्प्रियमित्रां प्रियस्थितिम् । नार्यावर्यकलत्रामे प्रतिहार्या प्रवेशिने ॥५॥ उपनीतोपत्रे सम्यगासोने स्वोचितासने । आयेत्यभिवधाते . स्म किमथं मामुपागते ॥६॥ ते प्रश्नानन्तरं तस्या वाचमिल्थमवीचताम् । विद्धि मौ तव सौन्दर्य कौतुकान् द्रष्टुमागते ॥८॥ इति स्वाकूतमावेध स्थितवत्योस्तयोरसौ । अक्ष्यथो मामथेत्याह युवां स्नानविभूषिताम् ॥१८॥ इत्युदोर्य समास्मानमाकल्प्या कल्पशोभितम् । सा तबोदर्शयामास ते च वीक्ष्येत्यवोचताम् ॥८६॥ तव रूपं पुरा दृष्टादमाद्बहुतरं क्षयम् । तथा हि नश्वरी कान्तिरसारा मत्यवमिणाम् ॥१०॥ तथापि तव लावण्यं गलत्तारुण्यमप्यलम् । जेतुमप्सरसा रूममपि 'स्थायुकयोवनम् ॥६॥ सुरूपस्त्रीकथास्विन्द्रः प्राशंसोद्भवतीं यथा। तथा त्वमिति ते प्रोच्य तिरोऽभूतां सुरस्त्रियौ ॥१२॥ जाता भूयिष्ठनिर्वेदा रूपहासधवात्ततः । राज्ञे न्यवेदयद्राज्ञी तवृत्तान्तं पान्विता ॥६॥ अथ क्षणमिव ध्यात्वा जगाद जगतीपतिः । कायस्य फल्गुतामित्यं वल्लभा वल्गु बोषणम् ॥१४॥
रात्रि योग पूरा कर जिनकी आत्मा शुद्ध हुई थी तथा प्रातःकाल भी जिन्हें लोगों ने देखा था ऐसे राजाधिराज मेघरथ चिरकाल तक सुशोभित हुए ॥४॥
अथानन्तर कोई दो स्त्रियां जो रानी के समान सुशोभित थीं और प्रतिहारी ने जिन्हें भीतर प्रवेश कराया था, मर्यादा का पालन करने वाली रानी प्रियमित्रा के सन्मुख पायीं ॥८५।। जब वे स्त्रियां भेंट देकर अपने योग्य आसन पर अच्छी तरह बैठ गयीं तब प्रियमित्रा ने उनसे कहा कि आप किस लिए मेरे पास आई हैं ? ॥८६॥ इस प्रश्न के बाद उन स्त्रियों ने इस प्रकार का वचन कहा कि आप हम दोनों को कौतूहल वश आपका सौन्दर्य देखने के लिए आई हुई समझे ॥८७॥ इस प्रकार अपना अभिप्राय कहकर जब वे स्त्रियां बैठ गयीं तब प्रियमित्रा ने उनसे कहा कि जब मैं स्नान कर आभूषण विभूषित हो जाऊं तब आप देखिए॥८॥ यह कहकर तथा अपने आपको आभूषणों से विभूषित कर उसने उन स्त्रियों के लिए दिखाया। देखकर उन स्त्रियों ने कहा कि तुम्हारा रूप पहले देखे हुए रूप से बहुत क्षय को प्राप्त हो गया है-कम हो गया है ठीक ही है क्योंकि मनुष्यों की कान्ति नश्वर तथा निःसार होती ही है ।।८९-९०॥ इतने पर भी यद्यपि तुम्हारा लावण्य ढ़लती हुई जवानी से युक्त है तो भी वह स्थायी यौवन से सुशोभित अप्सराओं के भी रूप को जीतने के लिए समर्थ है ॥११॥ इन्द्र ने सुरूपवती स्त्रियों की कथा चलने पर आपकी जैसी प्रशंसा की थी आप वैसी ही हैं, यह कहकर दोनों देवाङ्गनायें तिरोहित हो गयीं ॥१२॥
तदनन्तर रूप के ह्रास की बात सुन कर जिसे अत्यधिक वैराग्य उत्पन्न हो गया था ऐसी रानी ने लज्जायुक्त हो राजा के लिये उन देवियों का वृत्तान्त कहा ।।६३।। पश्चात् क्षणभर ध्यान कर राजा प्रिया को शरीर की निःसारता बतलाते हुए सुन्दरता पूर्वक इस प्रकार कहने लगे ।।४।।
समाप्तं कृत्वा २ रात्रिप्रतिमायोगम् ३ नायौं अर्यकलत्राभे इतिच्छेदः ४ समर्पितोपहारे ५ अलंकारालंकृताम् ६ स्थिरतारुण्यम् ७निःसारताम् ।
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