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________________ लब्ध नहीं है तथापि पद्मपुराण में जो बीच २ में दर्शन तथा अध्यात्म की चर्चा पाती है उससे उनकी प्रौढ़ विद्वत्ता सिद्ध होती है । अधिकांश पुराण ग्रंथ गुणभद्र के उत्तरपुराण पर आधारित हैं । जब मूल प्रणेता प्रामाणिक है तब उसके द्वारा रचित ग्रंथों पर आधारित ग्रन्थ प्रामाणिकता से रहित हों, यह संभव नहीं है । अलंकारों की बात जुदी है पर जैन पुराणों में जो कथा भाग है वह तथ्य घटनाओं पर आधारित है । असंभव तो कल्पनाओं से दूर है। असग कवि का शान्तिपुराण भी यथार्थ घटनाओं का वर्णन करनेवाला है। इसके बीच २ में आये हुए सन्दर्भ हृदय तल को स्पर्श करनेवाले हैं तथा जैन सिद्धान्त का सूक्ष्म विश्लेषण करने वाले हैं। जैन पुराण साहित्य की नामावली, मैंने भारतीय ज्ञानपीठ से प्रकाशित आदिपुराण प्रथम भागकी प्रस्तावना में दी है उससे प्रतीत होता है कि अब भी अनेक ग्रन्थ अप्रकाशित हैं तथा धीरे २ दीमक और मूषकों के खाद्य हो रहे हैं। आवश्यक है कि इन ग्रन्थों के शुद्ध और सुन्दर संस्करण प्रकाशित किये जावें। __ असग कवि शान्तिपुराण के रचयिता असग कवि हैं। इनके द्वारा विरचित वर्धमान चरित का प्रकाशन मेरे संपादन में जैन संस्कृति-संरक्षक संघ सोलापुर से हो चुका है। शान्तिपुराण पाठकों के हाथ में है । वर्धमान चरित में भाषाविषयक जो प्रौढ़ता है वह शान्तिपुराण में नहीं है क्योंकि वर्धमान चरित काव्य की शैली से लिखा गया है, और शान्तिपुराण, पुराण की शैली से । पुराण शैली से लिखे जाने के कारण अधिकांश अनुष्टुप् छन्द का प्रयोग किया गया है तथापि बीच बीच में अन्य अनेक छन्द भी इसमें उपलब्ध हैं। भाषा की सरलता और भाव की गंभीरता ने ग्रन्थ के सौन्दर्य में चार चांद लगा दिये हैं । असग कवि ने अपना संक्षिप्त परिचय इसी शान्तिनाथपुराण के अन्त में दिया है इस पृथिवी पर प्रणाम करने के समय लगी हुई मुनियों की चरण रज से जिसका मस्तक सदा पवित्र रहता था, जो मूर्तिधारी उपशम भाव के समान था तथा शुद्ध सम्यक्त्व से युक्त था। ऐसा एक पटुमति नाम का श्रावक था ।। १ ।। जो अनुपम बुद्धि से सहित था तथा अपने दुर्बल शरीर को समस्त पर्यों में किये जाने वाले उपवासों से और भी अधिक दर्बलता को प्राप्त कराता रहता थ ऐसा वह पटुमति मुनियों को आहारदान आदि देने से निरन्तर उत्कृष्ट विभूति विशाल पुण्य, तथा कुन्द कुसुम के समान उज्ज्वल यश का संचय करता रहता था ॥ २ ॥ उस पटुमति की वैरेति नामकी भार्या थी जो निरन्तर ऋषि, यति, मुनि और अनगार इन चार प्रकार के मुनि समूह में उत्कृष्ट भक्ति रखती थी और ऐसी जान पड़ती थी मानों सम्यग्दर्शन की मूर्तिधारिणी उत्कृष्ट शुद्धि ही हो ।। ३।। निर्मल कीति के धारक उन पटुमति और वैरेति के असग नाम का पुत्र हुआ । बड़ा होने पर वह उन नागनन्दी प्राचार्य का शिष्य हुआ जो विद्वत्समूह में प्रमुख थे, चन्द्रमा की किरणों के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002718
Book TitleShantinath Purana
Original Sutra AuthorAsag Mahakavi
AuthorHiralal Jain, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherLalchand Hirachand Doshi Solapur
Publication Year1977
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size20 MB
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