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प्रस्तावना
सम्पादन सामग्री :
श्रीशान्तिनाथ पुराण का संपादन निम्नलिखित दो प्रतियों के आधार पर किया गया है।
प्रथम प्रति का परिचय यह प्रति ऐलक पन्नालाल सरस्वती भवन ब्यावर को है तथा श्रीमान् पं० हीरालाल जी शास्त्री के सौजन्य से प्राप्त हुई है । इसमें ११४५३ इञ्च की साईज के ८६ पत्र हैं, प्रति पत्र में पंक्ति संख्या १२ है और प्रत्येक पंक्ति में ४..४२ अक्षर हैं । दशा अच्छी, अक्षरसुवाच्य हैं । लिपि संवत् १८७६ वि० सं० है । इस प्रति का 'ब' सांकेतिक नाम है।
द्वितीय प्रति का परिचय यह प्रति श्रीमान् पं. जिनदास जो शास्त्री फड़कुले कृत मराठी टीका के साथ वीर निर्वाण संवत् २४६२ में श्रीमान् सेठ रावजी सखाराम दोशी की ओर से प्रकाशित है । मराठी अनुवाद सहित ३४३ पृष्ठ हैं । शास्त्रा कार खुले पत्रों में मुद्रण हुआ है । माननीय शास्त्रीजी ने ऊपर सूक्ष्माक्षरों में श्लोक दिये हैं और नीचे मराठी अनुवाद । संस्कृत पाठों का चयन शास्त्रीजी ने ऐ० पन्नालाल सरस्वती भवन बम्बई की प्रति के आधार पर किया था । ऐसा प्रतीत होता है कि यह वही प्रति है जो अब ब्यावर के सरस्वती भवन में विराजमान है, क्योंकि ब्यावर से जो हस्तलिखित प्रति मुझे प्राप्त हुई है उसके पाठ प्रायः एक समान हैं। जैन पुराण साहित्य की प्रामाणिकता :
जैन पुराण साहित्य अपनी प्रामाणिकता के लिये प्रसिद्ध है । प्रामाणिकता का प्रमुख कारण लेखक का प्रामाणिक होना है । जैन पुराण- साहित्य में प्रमुख पुराण पद्मपुराण, आदिपुराण, उत्तरपुराण तथा हरिवंशपुराण हैं। इनकी रचना करने वाले रविषेणाचार्य, जिनसेनाचार्य गुणभद्राचार्य तथा जिनसेनाचार्य ( द्वितीय ) हैं । ये जैन सिद्धान्त के मर्मज्ञ उच्च कोटि के उद्भट विद्वान् थे। आदिपुराण के रचयिता जिनसेनाचार्य षट्खण्डागमके टीकाकार रहे हैं । गुणभद्राचार्य प्रात्मानुशासन आदि अध्यात्म ग्रन्थों के प्रणेता हैं । जिनसेनाचार्य द्वितीय लोकानुयोग तथा तिलोयपण्णत्ति मादि करणानुयोग के ज्ञाता थे। रविषेणाचार्य का यद्यपि पद्मपुराण के अतिरिक्त दूसरा ग्रंथ उप
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