________________
१४ ]
मेरु मंदर पुराण ठहरते हुये जीव तथा पुद्गलों के गमन करने और ठहरने में सहायक होकर प्रवृत्त होते हैं स्वयं किसी को प्रेरित नहीं करते।
जिस प्रकार जल के बिना मछली का गमन नहीं हो सकता फिर भी जल मछली को प्रेरित नहीं करता उसी प्रकार जीव और पुद्गल धर्म द्रब्य के बिना नहीं चल सकते; फिर भी धर्म द्रव्य उन्हें चलने के लिये प्रेरित नहीं करता, किन्तु जिसप्रकार जल चलते समय मछली को सहारा दिया करता है उसी प्रकार धर्म पदार्थ भी जीव और पुद्गलों को चलते समय सहारा दिया करता है। जिस प्रकार वृक्ष की छाया स्वयं ठहरने की इच्छा करनेवाले पुरुष को उहरा देती है- उसके ठहरने में सहायता करती है, परन्तु वह स्वयं उस पुरुष को प्रेरित नही करती तथा इतना होने पर भी वह उस पुरुष के ठहरने का कारण कहलाती है, उसी प्रकार पधर्मास्तिकाय भी उदासीन होकर जीव और पुद्गलों को स्थित कर देता है-उन्हें ठहरने में सहायता पहुचाता है, परन्तु स्वयं ठहरने की प्रेरणा नहीं करता। जो जीव प्रादि पदार्थों को ठहरने के लिये स्थान दे उसे आकाश कहते हैं। वह आकाश स्पर्श रहित, प्रमूर्तिक, सब जगह व्याप्त और क्रिया रहित है। जिसका वर्तना लक्षण है उसे काल कहते हैं। वह वर्तना काल तथा काल से भिन्न जीव आदि पदार्थों के आश्रय रहती है और सब पदार्थों का जो अपने-अपने गुरण तथा पर्याय रूप परिणमन होता है उसमें सहकारी कारण होती है। जिस प्रकार कुम्हार के चक्र के फिरने में उसके नीचे लगो हुई शिला कारण होती है उसी प्रकार काल द्रव्य भी सब पदार्थों के परिवतन में कारण होता है।। ६७ ॥
उयिरु उयिरल्ल पुन्नियं पावमूट। सैइर् तीर सेरिप्पु मुदिरपुं कट्ट, वीडुमुद्र ।। तुयतीकुतूयनेरियुसुरुक्कायुरप्पन् ।
मयतीरंद काक्ष युडयो इदुक्केन मदित्ते ॥६॥ अर्थ-• से रहित होकर सम्यग्दर्शन प्राप्त हे वैजयन्त राजा सुनो।
जीव पदार्थ, अजीव पदार्थ, पुण्य तथा पाप पदार्थ, पाश्रव पदार्थ, दोषों को रोकने बाला संवर पदार्थ, निर्जरा पदार्थ, तथा मोक्ष पदार्थ इनका अनादि काल से संसार में रहने वाले जीव के दुःख को नाश करके मोक्ष के दाता ऐसे अत्यन्त निर्मल रत्नत्रय मार्ग का संक्षेप में वर्णन करूंगा।
भावार्थ-हे राजन् ! मूर्खा रहित सम्यग्दर्शन को प्राप्त हुये तुम सावधानी पूर्वक मुनों। जीव अजीव पुण्य तथा पाप पदार्थों को तथा प्रात्मा में सर्वदा कर्म को लानेवाले माश्रव पदार्थ है। पाप और पुण्य को रोकनेवाला सवर पदार्थ है। कर्म की निर्जरा करने वाला निर्जरा पदार्थ है। प्रात्मा के साथ कर्मबंध को करनेवाले बंध पदार्थ हैं। आत्मा को मंसार से मुक्त कर सम्पूर्ण कर्मों को नाश करनेवाले ये मोक्ष पदार्थ हैं। इस प्रकार अनादि काल से मात्मा को संमार का कारण होनेवाले मोक्ष देनेवाले रत्नत्रय मार्ग का संक्षेप में निरूपण करेंगे। इसको हे राजन्! ध्यान पूर्वक सुनो।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org