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________________ मेरु मंदर पुराण [ ४१ अर्थ - लक्ष्मी देवी को देखकर कीर्ति देवी प्रसन्न होकर उसकी प्रशंसा करने वाली के समान सुन्दर रूप को धारण करने वाली सर्व श्री नाम की उनकी पटरानी थी । उसकी आंखें नील कमल के समान तथा शरीर स्वर्ण के समान गौर वर्ण था । जिस प्रकार नील कमल में भ्रमर लीन रहता है उसी प्रकार राजा वैजयन्त महारानी सर्वश्री के साथ भोगों में मग्न रहता था । इस प्रकार सुख भोगते २ कुछ दिनों के पश्चात् रानी सर्व श्री गर्भवती हो गई ।। ४७ ।। मुल्ल निकोडिन बे पयंदार पोर् । सेल्वस्सिरुवर् पयंदा ळंद तिरुवन्नाळ " मलिर् पोलितोन् मन्नन् मुन्नान् मदिकाना | प्रोल्लेन कडल् पोलु बंदिट्ट लग तिडतन् ॥४८ || अर्थ - जिस प्रकार जुही गुलाब आदि पुष्पों में अत्यन्त सुंगधित कलियां उत्पन्न होती हैं उसी प्रकार नव मास पूर्ण हो जाने के पश्चात् उस सर्वश्री रानी ने पुत्ररत्न को उत्पन्न किया। जिस प्रकार शुक्ल पक्ष के चन्द्रमा को देखकर समुद्र उमड़ पड़ता है उसी प्रकार पुत्र जन्म होने पर महा प्रतापी मल्लयुद्ध में प्रचंड बलशाली राजा वैजयन्त को अत्यन्त सन्तोष प्रद आनन्द प्राप्त हुआ । पुत्ररत्न प्राप्त होने के हर्ष में देश के याचकों को इच्छा पूर्वक दान देकर उनके मन को तृप्त किया । भावार्थ - जुही चमेली के पुष्प तथा लक्ष्मी के समान राजा वैजयन्त की पटरानी सर्वश्री के प्रत्यन्त सुलक्षण से सम्पन्न पुत्र रत्न पैदा हुआ। जिस प्रकार शुक्ल पक्ष के चन्द्रम देखकर समुद्र उमड़ पड़ता है उसी प्रकार महान् प्रतापी बलशाली तथा मल्लयुद्ध में परम प्रवीण उस राजा को पुत्रोत्पत्ति के हर्ष में अपार आनन्द प्राप्त हुआ । पुत्र जन्म के हर्ष में प्रसन्न होकर राजा ने सभी प्रजाजन व याचकों को बुलाकर उनके दुख को दूर किया तथा इच्छापूर्वक दान देकर उन्हें भली-भांति सन्तुष्ट किया । ४८ ।। Jain Education International सुन मेन्ने सोरिद तुरियम् । विन्नैविम्मि मुळ गिन वेण्कोडि || एरोड्रलु गनु माडिन । पुण्येनगर पोषण गरायदे ||४६ || अर्थ-उस राजा वैजयंत के परिवार वालों ने प्रत्यन्त सुगन्धित द्रव्यों से युक्त सुगन्धित चूर्ण तथा तैल आदि लाकर उनको दिया। तत्पश्चात् राजा ने अठारह प्रकार के वाद्य बजवाये, जिसकी ध्वनि देवलोक तक चली गयी और उससे सारा नगर गुंज उठा । जहां तहां रास्ते तथा गलियों में श्वेत पताकायें बंधी हुई थीं। इस प्रकार श्रेष्ठ व सुन्दर पुत्र जन्म के समाचार को सुनते ही सम्पूर्ण देश में आनन्द छा गया । और राजा वैजयन्त की कीर्ति सारे वीतशोक नगर में फैल गई। उस समय वह वीतशोक नगर ऐसा सुन्दर मालूम होता था कि मानों यह सब देवलोक ही हो । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002717
Book TitleMeru Mandar Purana
Original Sutra AuthorVamanacharya
AuthorDeshbhushan Aacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages568
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size1 MB
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