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________________ मेर मंदर पुराण कर्पग मवन् करुदिदि दलाल । सोर पोरुळरि सुरवि माकडल् ॥ मर्पयसिनान् मालवरैमले । कोट वर्कलाम कूद्र नोक्कुमे ॥४३॥ अर्थ वह वैजयन्त राजा याचक जनों की इच्छा पूर्ति करने के लिये कल्पवृक्ष के समान था तथा छहों प्रकार के द्रव्यों का भली प्रकार से ज्ञाता था। इसके साथ हो साथ वह मनन करने में सदैव दत्तचित्तं रहता था। सम्पूर्ण पागम को समझकर उनमें सागर के अपार ज्ञानभडार था। वहां का राजा युद्धकला एवं बाहुबल में पर्वत के समान महाबलशाली एवं शत्रुजनों के लिए यमराज के समान था। भावार्थ-वह राजा याचक जनों के लिये कल्पवृक्ष के समान था। अर्हन्त भगवान् द्वारा प्रतिपादित छहों द्रव्यों को अच्छी तरह से जानता था तथा परिपूर्ण रूप से पालने वाला था। युद्ध में शत्रुवर्ग को जीतने के लिये उनके भुजबल पर्वत के समान प्रतीत होते थे। और वह शत्रु को जीतने के लिये यमराज के समान प्रजेय था । धार्मिकजनों में बन्धु के समान, साधुओं के लिये सेवक और विनम्रभावी तथा जिनेन्द्र भगवान की पूजा करने में वह सर्वदा भ्रमर की भांति लवलीन रहा करता था। सत्पात्रदान करने में रामा श्रेयांस के समान और प्रजा में वात्सल्यभावी तथा धर्मानुरागी था । उत्तम श्रावक के सम्बन्ध में एक कवि ने कहा भी है कि : श्रोसवंज्ञ-पदाब्जसेवनमतिः शास्त्रागमे चिंतना । तत्त्वातत्त्व-विचारणे निपुणता ससंयमो भावना ।। सम्यक्त्वे रचता अघोपसमता जीवादिके रक्षणा । सत्सागरोगुणा जिनेन्द्रकथिता येषां प्रसादाच्छिवम् ।। अर्थ-सदैव श्री जिनेन्द्र भगवाम् के चरणों में सेवन की बुद्धि, शास्त्र का चितवन तत्वों का विचार उसमें निपुणता, सत्संग की भावना, सम्यक्त्व में रुचि, समता, जीवों पर दया नथा जिनेन्द्र भगवान् द्वारा प्रतिपादित धर्म में सदैव रुचि रखने वाला था ॥४॥ सूक्षि यार पर्ग सुरुक्क वल्लदु । बाळशे पोरिलन बन सो लिडिमन् । नाक्षियालिस केट बसुनमा । ताक्षिपोल वैयंदा निरंजुमें ॥४४॥ ' अर्थ-शत्र राजामों के बल को किस प्रकार से कम करें, इसका वह प्रयत्न भली भांति जानने वाला था । युद्ध न हो ऐसे कठोर वचनों को त्यागकर मधुर बचनों द्वारा प्रीति से काम लें, ऐसा वह वैजयंत राजा न्याय नीति से राज्य करता था। वह साम दाम दण्ड भेदारि से प्रजा पर शासन करने वाला था। जिस प्रकार प्रातः उठकर जिनेन्द्र भगवान् का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002717
Book TitleMeru Mandar Purana
Original Sutra AuthorVamanacharya
AuthorDeshbhushan Aacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages568
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size1 MB
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